BHU छात्रों के सपोर्ट में मुस्लिम एंकर, बोले- फ़िरोज़ संस्कृत ज्ञाता हैं, हिंदू कर्मकांडों के नहीं !

BHU कैंपस : प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ की नियुक्ति पर ख़ुद मुस्लिम एंकर नें छात्रों का साथ दिया बोले संस्कृत जानकार होना मसला नहीं है।

BHU का मुद्दा भी राजनीतिक गलियारों में घूमने लगा है लोग अपने अपने हिसाब से मुद्दे का समर्थन या विरोध कर रहे हैं। दरअसल बिना राग लपेटे बताएं तो एक मुस्लिम प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ खान की नियुक्ति BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में हुई थी। जिसको लेकर छात्रों नें विरोध किया था ।

BHU Students Protesting Against Recruitment of Non Sanatani Professor

फ़िलहाल संकाय फ़िर से खुल गया है उधर फ़िरोज़ बनारस को विदा कह चुके हैं। उन्होंने कहा “मुझे संस्कृत पढ़ते वक़्त कभी नहीं लगा कि मैं मुस्लिम हूँ मग़र अब हुआ।”

फ़िरोज़ ज़ाहिर है विरोध जताएंगे क्योंकि उन्होंने योग्यता के दमपर नियुक्ति पाई थी। लेकिन कुछ प्रदर्शनकारी छात्रों नें कहा कि वो फ़िरोज़ का विरोध नहीं कर रहे बल्कि नियुक्ति देने वाले प्रशासन का।

Firoz Khan, Who was Recruited as Sanskrit Professor in BHU

हालांकि ज्यादातर लोगों नें फ़िरोज़ का साथ दिया लेकिन कुछ लोगों नें छात्रों को भी सही ठहराया इनमें से एक हैं ‘जी सलाम’ के एंकर व प्रोड्यूसर डॉक्टर इमरान खान जोकि ख़ुद इस्लाम मानने वाले हैं लेकिन प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ खान जैसे वो भी हिंदू धर्म को मानते हैं। उन्होंने अपने तर्कों से छात्रों का समर्थन किया है। उन्होंने इस बारे में अपने फेसबुक पोस्ट से एक लेख लिखा है।

Zee Salam Anchor, Imran Khan

एंकर इमरान खान लिखते हैं :

“BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय” में डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर छात्र विरोध कर रहे हैं। इस विषय पर मैं छात्रों के साथ हूं जैसा कि हमेशा होता है मीडिया का एक बड़ा वर्ग छात्रों के खिलाफ है। क्योंकि वे अपनी संकीर्ण सोच से ये झूठ प्रसारित करने में लगे हैं कि फिरोज़ खान की नियुक्ति का मसला महज ‘संस्कृत भाषा’ का है।

जबकि ऐसा नहीं है किसी मुसलमान के संस्कृत सीखने जानने और पढ़ाने से कोई आपत्ति नहीं। बल्कि बेहद खुशी है विद्यार्थियों की माँग सिर्फ इतनी है कि “संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय” में किसी मुस्लिम या ईसाई का प्रवेश न हो। वहाँ वही हो जो सनातन परंपरा और हिन्दू धर्म को मानने वाले और जीने वाले हों ताकि विद्यार्थी सनातनी विद्या ग्रहण कर सकें। एक मुसलमान संस्कृत भाषा का ज्ञानी तो हो सकता है लेकिन सनातन परंपराओं, गुरु शिष्य परंपराओं वैदिक जीवन पद्धति, नित्य कर्म पद्धति तक का ज्ञानी या पालन करने वाला नहीं हो सकता।

संस्कृत भाषा का जानकार होना अलग बात है और कर्मकांड में परांगत होना अलग। मैं दावे के साथ कहता हूं सनातनी कर्मकांड के ज्ञाता हिंदू छोड़िये ब्राह्मण भी अब गिने चुने ही होंगे। उसमें से भी कम ही होंगे जो इसका पालन करते होंगे। ऐसे में एक ऐसे व्यक्ति जो भाषा के तो जानकार हैं लेकिन पद्धतियों के नहीं उन्हें कैसे धर्म विज्ञान में गुरुपद मिल सकता है?

जो सनातनी देवी देवताओं और परंपराओं में आस्था ही नहीं रखते वो भला शिष्यों को उनका तत्व ज्ञान कहां से दे पायेंगे ? क्योंकि बात सिर्फ किताबी ज्ञान की नहीं आध्यात्म दिनचर्या आदतों और संस्कार की है। स्पष्ट रहे कि मामला संस्कृत भाषा का नहीं है. बीएचयू में संस्कृत भाषा और साहित्य का अलग विभाग है।

जहां वे अध्यापन का काम कर सकते हैं किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन प्रो. फिरोज खान साहब की नियुक्ती “संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय” में हुई है। जिसकी स्थापना महामना मदन मोहन मालवीय जी ने ‘हिन्दू सनातन धर्म’ की रक्षार्थ और हिन्दू धर्म की ‘वैज्ञानिक व्याख्या’ और इसके संरक्षण के लिए की थी। जहाँ आज भी वैदिक गुरुकुल रीति से ही विद्या अर्जन होता है।

अर्थात वे आम कूल ड्यूड स्टूडेंट्स और बेब्स की तरह नहीं बल्कि सनातन गुरुकुल पद्धति से विद्या ग्रहण करते हैं। एक कर्मकांडी पुरोहित केवल संस्कृत भाषा का ही जानकार नहीं होता। इसके इतर मंत्रों और अनुष्ठानों का विशेषज्ञ भी होता है। वेद, व्याकरण, ज्योतिष, वैदिक दर्शन, धर्मागम, धर्मशास्त्र मीमांसा, जैन-बौद्ध दर्शन के साथ-साथ इन सबसे जुड़ा साहित्य। क्या ये विषय महज़ साहित्य हैं ? थोड़ा विचार कीजिएगा।”

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