नई दिल्ली – राज्यसभा के सांसदों को दिए गए एक जवाब में, भारत सरकार ने दलित अत्याचार के कुल मामलों का खुलासा किया तथा उन मामलो की दोषसिद्धि पर भी आंकड़े पेश किये। रिपोर्ट के अनुसार कई राज्यों में दोषसिद्धि का प्रतिशत 1% से भी कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में दलितों के खिलाफ अपराध या अत्याचार के कुल 41793 मामले और आदिवासी लोगों के खिलाफ अपराध के कुल 7815 मामले दर्ज किए गए। साथ ही एससी एसटी एक्ट के तहत मुआवजा पाने वालों की संख्या में पिछले 4 वर्षों में लगभग 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
वहीं बिहार जैसे बड़े राज्यों में वर्ष 2019 में दलितों के खिलाफ अपराध या अत्याचार के 6540 मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन अदालती मुकदमों में केवल 44 ही सही साबित हुए। जबकि, एससी-एसटी एक्ट के कुल 97 मामले एसटी द्वारा दायर किए गए थे, लेकिन केवल 2 ही सही पाए गए। दोष सिद्ध होने की दर क्रमशः 0.67% और 2.06 के आसपास थी।
एससी के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में पाए गए हैं। सूबे में कुल 9451 मामले एससी समाज पर हुए अत्याचारों के अधिनियम के तहत दर्ज किये गए थे, जो देश में ऐसे कुल मामलों का 22.61% है। इसके बाद बाकी राज्यों की तुलना की जाए तो राजस्थान में 6659 मामले (सभी मामलों में 15.9%), बिहार (15.6%) और मध्य प्रदेश (12.6%) हैं।
एसटी द्वारा दर्ज मामलों में यूपी ने वर्ष 2019 में 600% की वृद्धि देखी है। विवरण के अनुसार, 705 मामले दर्ज किए गए लेकिन कोर्ट परीक्षण के दौरान केवल 1 मामला ही सही निकला।
वहीं केरल, कर्नाटक दोनों राज्यों में सजा की दर 1 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है। कर्नाटक में, एससी-एसटी एक्ट के मामलों की संख्या 1733 थी। जबकि दोषसिद्धि दर केवल 1.67% थी।
केरल में, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पीओए अधिनियम के तहत औसत सजा दर 1.76% रही।
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Kapil reports for Neo Politico Hindi.