राम राज्य: मजदूरों के खून से सैनेटाईज हुए रेल्वे ट्रैक कैसे सरकारी Corona मारेंगे?

आज इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने संपूर्ण मानव जाति को प्रभावित किया है जिसके कारण लगभग सभी देश इसकी जद में आ चुके हैं. वहीं भारत भी इसके प्रभाव से वंचित नही रहा है, बजाए भारी बंदीसो के, इस महामारी का भारत पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है. दुर्भाग्य से बीते दिनों भारत ने इस महामारी की जन्मस्थली चीन को भी संक्रमितों की संख्या में पछाड़ दिया और विश्व में सर्वाधिक कोरोना संक्रमितों वाला 11वां देश बन गया।

इस महामारी से अगर सबसे अधिक कोई वर्ग परेशान हुआ है तो वो है मजदूर वर्ग जो अपनी मातृभूमि को छोड़ कर दो पैसा कमाने परिवार का भरण पोषण करने बाहर शहर आया. परिवार को अपने गांव की गोद मे छोड़कर, कोई बाप अपने बेटे तो कोई बेटा अपनी माँ से हज़ारो किलोमीटर दूर फँसा है।

लॉक डाउन के प्रथम चरण से दूसरे चरण के सफर तक सब धरातल पर उतरता हुआ दिखाई पड़ रहा था लेकिन तीसरे चरण के चरण पड़ते ही लोगो के सब्र का बांध टूट पड़ा. भूख, ग़रीबी और परिवार से मिलने की ललक ने इनको पैदल अपने गाँव जाने पर मजबूर कर दिया, लाखों-करोड़ो मजदूर जब सड़क-रास्तों से हफ़्तों महीनों तक जाते रहे लेकिन प्रवासी मजदूरों के इस हाल को नजरअंदाज कर “केंद्रीय श्रम मंत्री” श्री संतोष कुमार गंगवार जी मोन ही रहे.

हालांकि सरकार ने 1 मार्च 2020 को श्रमिक स्पेशल ट्रेन की शुरुआत की थी जिसपर मजदूरों के किराए को लेकर भीषण राजनीति भी हुई. किराए का 85% केंद्र व 15% राज्य द्वारा भुगतान करने का सुझाव था लेकिन राज्य व केंद्र के बीच तालमेल की कमी व राजनीतिक कारण इनके किराये को निगल ना सके. बरहाल गाने बजाने पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन तेलंगाना के लिंगमपल्ली से झारखंड के हटिया के लिए 1200 प्रवासी मजदूरों को लेकर चल पड़ी. सरकार ने मीडिया के माध्यम से खूब डंका पीटवाया फ़िर भी मजदूरों की स्थिति जस की तस ही दिखाई पड़ी.

रेल्वे ने सफ़ाई में कई ट्वीट छाप दिए व अन्य सैकड़ों श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाकर ट्रैक को चमकाने का प्रयास किया गया जिसके ट्रैक मजदूरों के खून से सैनेटाईज हुए हैं. दरअसल यह लोग प्रवासी भारतीय ना होकर प्रवासी मजदूर थे जो वन्दे भारत मिसन की अंधाधुंध में पड़ी धुंध में एक वन्दे भारत भी इनके लिए मुफ़्त ना दौड़ा सके.

लोग अभी भी पैदल चलने पर मजबूर हैं, सरकारों ने आधिकारिक तौर पर श्रमिकों के भोजन पानी की व्यवस्था करने के लिए जिलाधिकारियों को सख्त निर्देश दिए, लेकिन मजदूरो को ये सब जरूरी चीज़ उप्लब्ध हो उसको सुनिश्चित करने के लिए कोई जमीनी स्तर पर प्रक्रिया नहीं है. सरकार को कोसना एक ओर वही सभी अगर अपना काम बिल्कुल निष्ठा से करते तो शायद कोई भूखा या मकान के किराए के डर से पलायन ही ना करता।

इसी बीच राजनीतिक तापमान में ओले बरसाने आई RJD पार्टी के नेता अलग ही धुन में मस्त है. लालू सुपुत्र टिका लगाए Corona पर ज्ञान के भजन भाज रहे है.

मंत्रियों में एक्शन में दिख रहे केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने NHAI को निर्देश भी दिया कि रा० रा० मार्ग के सभी टोल पर पैदल निकले मजदूरों के खाने-पीने की उचित व्यवस्था की जाए. परंतु धरातल पर झांके कौन?

वहीं रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल जी ने ट्विटर के माध्यम से कहा कि प्रवासी मजदूरों को बड़ी राहत पहुंचाने के उद्देश्य से भारतीय रेलवे देश के किसी भी जिले से ‘श्रमिक स्पेशल’ ट्रेन चलाने को तैयार है। इसके लिये जिला कलैक्टर को फंसे हुए श्रमिकों के नाम, व उनके गंतव्य स्टेशन की लिस्ट तैयार कर राज्य के नोडल ऑफिसर के माध्यम से रेलवे को आवेदन करना होगा।

सरकार के प्रचारित कार्यो में इक्के दूक्के कार्य को छोड़ दे तो कोई भी ऐसी मदद मजदूरों तक सीधी नहीं पहुच रही हैं जिससे ये हज़ारों किलोमीटर लम्बा सफ़र थम जाए. ख़ैर सफ़र में पड़े छालो की पीड़ा को मजदूर कैसे भुलाएंगे यह सोशल मीडिया बखूबी जानता है. वो कहते हैं ना अंधेर नगरी चौपट राजा!

About the author: Sagar Jha is a student activist mostly vocal on environmental issues. He is also being associated with various national level NGOs and nation-building organizations. 

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