रीवा: किसी समाज में एक विधवा स्त्री ऊपर से गरीबी का दंश झेल रही हो तो उसका जीवन हर दिन किसी इम्तिहान जैसा गुजरता है।
क्योंकि किसी ने कहा था कि:
जीवन अब भी सबका जीवित जीवन, मुझको पर वर्जित है; बह गया जीवन अश्रुधार में नैनों में; अश्रु बस संचित हैं…!
फ़लाना दिखाना की ग्राउंड रिपोर्टिंग टीम मध्यप्रदेश के रीवा जिले में पहुंची तो वहां एक गरीब ब्राह्मण महिला से मिली। रीवा जिले के सेमरिया तहसील अंतर्गत तिघरा गांव की रहने वाली रामकली तिवारी आज भी गरीबी व सिस्टम की अनदेखी का शिकार बनी हुई हैं।
गांव के एकांत में 48 वर्षीय रामकली तिवारी अपने घांस फूस के व खपरैल वाले एक छोटे से घर में अकेले रहती हैं। उन्होंने बताया कि काफी बचपन में उनकी शादी हो गई थी लेकिन उनका गमन (शादी के बाद ससुराल जाने की रस्म) भी नहीं हुआ था तभी उनके पति दुनिया से चले गए। तभी से वो एक विधवा का जीवन व्यतीत कर रही हैं और अब तो आधी उम्र भी गुजर चुकी है।
उनके घर की हालत देखकर रामकली तिवारी से जब सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जब गांव के प्रतिनिधि से प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में गांव के प्रतिनिधि से बोला तो उनका जवाब था कि वो ऊपर से होता है हमारे बस में कहां है।
रामकली ने बताया कि वो पढ़ी लिखी भी नहीं हैं न घर में टीवी रेडियो है कि किसी योजना का पता चले न ही कोई प्रतिनिधि पूछता है कि आपको ये योजना मिली या नहीं। वहीं ग्रामीणों से रामकली की गरीबी पर पूछा तो पता चला कि रामकली का जीवन दूसरों द्वारा थोड़ा बहुत दान में दिए गए अनाज व कोई ज्यादा उदार हुआ साल में कपड़े या हजार पांच सौ दिए पैसों से किसी तरह कट रहा है।
रामकली ने खुद भी बताया कि आटा चक्की वाले उनकी गरीबी जानते हुए उनसे गेंहू पिसाई से पैसे नहीं लेते। रामकली ने बताया कि 8 डिसमिल जमीन है उसमें कुछ नहीं होता। खाने के लिए 5 किलो सरकारी राशन मिलता है और 600 रुपए विधवा पेंशन मिलती है उसी से घर का खर्च व खाना पीना होता है। लेकिन इंसान से जीवन में रूखे सूखे खाना खाने के अलावा भी कुछ जिंदगी होती है।
ससुराल जाने से पहले हुआ पति का देहांत लेकिन फिर भी नहीं किया दूसरा विवाह
रामकली ने बताया कि बहुत कम उम्र में उनकी शादी हो गई थी। लेकिन ससुराल जाने से पहले ही पति का देहांत हो गया था। लेकिन कभी भी उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। परिजनों के लाख कहने के बावजूद रामकली ने पति के विरह के चलते दूसरा विवाह नहीं किया। जिससे उनकी हालत बेहद दयनीय हो गई। वहीं कोई भी सरकारी योजना का इन्हे लाभ नहीं दिया गया है। घर में न सिलेंडर है और न ही आवास योजना का कोई लाभ मिल रहा है। हर कोई उन्हें दुत्कार का भगा देता है।
कच्चा घर है हर साल उसकी छवाई करानी होती है उसमें 2-4 हजार लग जाते हैं। रामकली बताती हैं कि पिछली गर्मी में एक पंखा खरीदा, पहले जमीन पर ही लेटती थी अब एक लोहे की खाट खरीद ली है। गांव के उदार लोग दाल व सीजन में सब्जी दे देते हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या घर की है चारो ओर शाम से अंधेरा छा जाता है घर के अंदर बस एक बल्व है। और रात में कच्चे घर होने से जीव जंतु काटने का खतरा बना रहता है।
रामकली अपनी गरीबी सुनाते सुनाते भावुक भी हो जाती थीं हालांकि हमारे रिपोर्टर ने उन्हें दिलाशा दिलाई कि हम शासन प्रशासन तक आपकी आवाज पहुंचा ने की कोशिश करेंगे ताकि कम से कम एक पक्का घर मिल जाए। बाकी जीवन तो दान पुण्य से चल जाएगा।
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