लखनऊ: अदालत ने जमीन विवाद में झूठी एफआईआर दर्ज कराने वाले सहदेव को दोषी मानते हुए सात साल की सजा सुनाई है। सहदेव ने पहले से जेल में बंद एक व्यक्ति और उसके बेटे के खिलाफ लूट और एससी/एसटी ऐक्ट में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। विवेचना में मामला झूठा साबित हुआ। इसके बाद कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सहदेव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सुनवाई की और उसे दोषी करार दिया।
पहले से जेल में बंद व्यक्ति पर लगाया लूट और उत्पीड़न का आरोप
सहदेव ने 12 अप्रैल 2024 को अदालत के माध्यम से गाजीपुर थाने में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि 16 दिसंबर 2023 को सत्यनारायण और उनके पुत्र संजय ने उससे बीस हजार रुपये और मोबाइल लूट लिया। इस आधार पर पुलिस ने लूट और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। जांच के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि जिस समय की घटना बताई गई है, उस वक्त सत्यनारायण एक पुराने मुकदमे में जेल में बंद थे। वे 13 अगस्त 2021 से जेल में थे और 12 अप्रैल 2023 को रिहा हो चुके थे, लेकिन जमानतदार नहीं मिलने की वजह से दिसंबर 2023 तक जेल से बाहर नहीं आ सके थे। सीओ विकास जायसवाल की जांच में यह बात सामने आई और पुलिस ने झूठा मामला मानते हुए क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की।
कोर्ट ने सहदेव के खिलाफ स्वतः लिया संज्ञान, मुकदमा दर्ज कर सुनवाई की
पुलिस की रिपोर्ट मिलने के बाद कोर्ट ने सहदेव के खिलाफ वाद दर्ज किया और सुनवाई शुरू की। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने बताया कि सहदेव अनुसूचित जाति से है और उसने पहले भी लगभग 10 मुकदमे एससी/एसटी ऐक्ट में दर्ज कराए हैं, जिनमें जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई थी। इसके अलावा बताया गया कि सहदेव ने इस्माइलगंज में एक प्लॉट खरीदा था, जिससे जुड़ी रंजिश के चलते उसने पहले भी वजीरगंज थाने में सत्यनारायण पर मुकदमा दर्ज कराया था। उसी पुराने विवाद को आधार बनाकर उसने लूट और उत्पीड़न की झूठी कहानी तैयार की थी।
अदालत ने दोषी करार देते हुए सुनाई सजा, मनुस्मृति का किया उल्लेख
विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी ऐक्ट) विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने सहदेव को दोषी करार देते हुए सात साल की सजा और ₹2,01,000 रुपये का जुर्माना सुनाया। अपने फैसले में उन्होंने मनुस्मृति के एक श्लोक का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि जिस सभा में धर्म और असत्य से सत्य को मारा जाता है, वहां के सभासद भी उस पाप के भागीदार बनते हैं। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में वादी सबसे अहम साक्षी होता है और उसे झूठा मुकदमा दर्ज नहीं कराना चाहिए। इस मामले में सहदेव ने जानबूझकर झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई और पहले से जेल में बंद व्यक्ति को लपेटने का प्रयास किया, जो न्याय प्रक्रिया के साथ धोखा है।