आगरा: ताजगंज के पुष्पांजलि ईको सिटी कालोनी में बच्चों के झगड़े में एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होने के बाद सेवानिवृत फौजी की पत्नी को करीब 15 दलितों ने जिन्दा फूंक डाला। कॉलोनी में हुए पुरे प्रकरण को पीड़ित अनिल राजावत ने हमारी टीम को रोते बिलखते बयान किया। बातचीत में पीड़ित पक्ष ने वह सब जानकारियां हमसे बताई जो मीडिया आरोपी पक्ष के दलित होने के कारण डकार गया। इस प्रकरण में न तो मुआवजे के लिए मीडिया का मुँह खुला और न ही रिपोर्टिंग में हाथरस जैसा उबाल आया।
अनिल अपनी पत्नी संगीता के इस तरह चले जाने से बेहद आहत है। उन्होंने हमें बताया कि अब उनकी ज़िन्दगी उजड़ गयी है जीने का मन नहीं है। साथ ही उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर भी आशंका जताई है कि दलित उन्हें भी जान से मार सकते है।
अनिल राजावत ने हमें आगे बातचीत में बताया कि झूठे एससी एसटी एक्ट में उन्हें पुलिस ने भी बहुत परेशान किया था। पुलिस ने बिना जांच उन्हें थाने बुलाकर मानसिक पीड़ा पहुंचाई थी। उन्हें दस घटने थाने में ही बैठा कर धमकाया गया था। पीड़ित पक्ष को जेल भेजने तक की बातें पुलिस ने कही थी।
पंचायत में किए गए जलील, बार बार मास्क उतरवाकर किसी आरोपी की तरह दिखाया जा रहा था चेहरा
पंचायत में भी अनिल राजावत व मृतक संगीता के साथ अमानवीय हरकत करी गयी थी। सरेआम लगभग 60 से 70 लोगो की विशेष पंचायत में दंपत्ति का मास्क उतरवाकर उन्हें जलील किया गया था।
बार बार मास्क हटवाकर उन्हें किसी कुख्यात आरोपी की तरह सबके सामने घूम घूमकर चेहरे को दिखाया जा रहा था जिससे दंपत्ति पूरी तरह सहम गया था। मृतक संगीता को पुरुष आरोपियों के दोनों हाथो से पैर छूने के लिए मजबूर किया गया। इससे भी मन नहीं भरा तो दंपत्ति का मास्क उतरावरकर उनका चेहरा दिखा उन्हें जलील किया गया। यह सब इसलिए हो रहा था क्यूंकि पीड़ित पक्ष राजपूत था। वहीं पुलिस अब पंचायत में मौजूद उन लोगो का पता लगाने में जुटी है जिन्होंने इस घिनौनी हरकत को अंजाम दिया है।
इस मामले में कॉलोनी भरत खरे और उसकी पत्नी सुनीता खरे को जेल भेज दिया गया। पुलिस ने इन दोनों के साथ दीपक व सोनू सहित चार नामजद और 10-12 अज्ञात पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया है।
एससी एसटी एक्ट में दर्ज नहीं किये गए कॉलोनी के लोगो के बयान
पुलिस द्वारा भी पीड़ित पक्ष पर खुद अत्याचार किये गए थे। एससी एसटी एक्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने कॉलोनी के लोगो के बयान भी दर्ज नहीं किये थे जिससे सच्चाई सामने आये। कॉलोनी के लोगो ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि दलितों ने पैसे ऐंठने व पीड़ित पक्ष को निचा दिखाने के मकसद से इस घटना को अंजाम दिए था।
छोटे बच्चो की पार्क में लड़ाई को एससी एसटी एक्ट में बदल दिया गया व आरोपी बच्चे के माता पिता को बना दिया गया था। पुलिस ने लाख कहने पर भी बयान दर्ज नहीं किये थे जिससे दंपत्ति पर समझौते के लिए दबाव बन गया था। वहीं पंचयात में उन्हें काफी जलील किया गया था। पैर छूने को मजबूर करने से लेकर उनका चेहरा दिखा दिखा कर सबके सामने उन्हें जलील किया गया। एक फौजी जिसने देश की सेवा करी हो उसके साथ ऐसी घटना ने पूरी कॉलोनी के लोगो को दुःख पहुंचाया है।
लोगों ने बताया है कि अनिल की तरफ से कॉलोनी वासी थे, जबकि भरत खरे के पक्ष में बाहर से दलित सामाज के लोग आए थे। वह बार-बार संगीता और अनिल को अपमानित कर रहे थे।
हाथरस कांड के बाद सवर्ण और वाल्मीकि समाज में पहले से तनाव की स्थिति थी
कॉलोनी के लोगो के मुताबिक बिना बात के वाल्मीकि समाज ने सवर्ण समाज के लोगो से तनाव पैदा कर लिया था। जिसके कारण वाल्मीकि समाज के दबाव में फर्जी एससी एसटी एक्ट एक राजपूत परिवार पर थोप दिया गया। अनिल राजावत फ़ौज से रिटायरमेंट के बाद एक कंपनी में सुरक्षा का कार्यभार संभाल रहे थे।
पंचायत में वाल्मीकि समाज की ओर से जलील किये गए राजपूत परिवार से साफ़ था कि लोगो ने सवर्णो के खिलाफ कितनी गृह्णा पाल रखी है। पाँव छूने से लेकर बार बार चेहरा खुलवा कर उन्हें जलील किया जाना अपने आप में सभ्य समाज में किसी धब्बे से कम नहीं है।
सरपंच से नहीं हो पाया संपर्क
पुरे मामले में सरपंच का रोले बेहद अहम माना जा रहा है। हमने बार बार प्रधान को फ़ोन किया लेकिन उन्होंने एक बार भी फ़ोन नहीं उठाया।
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