दरअसल, 2018 के अपने फैसले में कोर्ट ने अग्रिम जमानत का प्रावधान दिया था. साथ ही गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसके बाद दलित संगठनों के विरोध को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 20 मार्च के अपने उस आदेश को वापस ले लिया है जिसमें अनुसूचति जाति और अनुसूचित जनजाति कानून के अन्तर्गत गिरफ्तारी के प्रावधानों को कठोर बना दिया गया था।
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) October 1, 2019
20 मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट नें दिया था ये फ़ैसला :