बंगाल(कोलकाता) : हर किसी का सपना होता है की वह IIT या IIM से पढ़े, दरअसल भारत में इसे होनहार छात्रों का तमगा माना जाता है। हम कितनी भी उल्ल झुलुल बाते फेक ले कि पढाई से किसी कि बुद्धिमता नहीं जानी जाती परन्तु सच यही है कि IIT जैसे संस्थानों ने अपना लोहा पुरे विश्व में मनवाया है।
दुनिया कि सबसे बड़ी कंपनी के सीईओ सुन्दर पिचाई भी IIT कि ही पैदाइस है, IIT कि इसी चकाचौंध पर हमेशा से नजर नकस्लियों कि भी रही है।
नक्सली भी चाहते है कि उन्हें IIT के होनहार दिमाग लीड करे जिस कारण से IITians का ब्रेन वाश करने का एक पैनल नक्सलियों ने बना डाला है जो अर्बन नक्सल की श्रेणी में आते है। आज ऐसी ही कहानी हम आपको बताने जा रहे है जिसमे एक IIT खड़गपुर का छात्र कैसे पढाई बीच में छोड़ कर नक्सलियों का सबसे बड़ा नेता बन जाता है।
यह कहानी है बंगाल के अर्नब दाम कि जिन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग कि पढाई तीसरे सेमेस्टर में छोड़ कर नक्सलियों का “छात्र युबा संग्राम” कमिटी का दामन थाम लिया था । अर्नब बचपन से ही गणित में अव्वल रहता आया था, उसका सपना था प्रोफेसर बन कर बंगाल कि शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना जिसके लिए वह सरकार से खफा भी रहता था।
अर्नब के पिता सेशन कोर्ट में जज थे, ना ही तो अर्नब को पैसे कि तंगी थी ना ही वो पढाई में कमजोर था तो ऐसा क्या हुआ था कि वो नकस्लवाद में कूद पड़ा।
दरअसल IIT के शुरुआती दिनों में अर्नब एक नक्सली नेता के संपर्क में आया जिसने कभी अर्नब को यह नहीं बताया कि वह नक्सली है जिसके बाद वह धीरे धीरे अर्नब का ब्रेन वाश करने का काम करने लगा। उस नक्सली नेता का नाम दिबॉय बताया जाता है जो अरनब से कहता था तुम ऐसे शिक्षा व्यवस्था नहीं बदल सकते हो तुम्हे यह व्यवस्था ही उखाड़ फेकनी होगी।
अर्नब दिबॉय कि बातो से काफी प्रभावित होने लगा जिस कारण से उसने नक्सलियों के छात्र संगठन “छात्र युबा संघर्ष” में शामिल होने का मन भी बना लिया था। IIT से होने कि वजह से नक्सलियों में उसका रुतबा भी बढ़ता गया जिससे अर्नब को नक्सलवाद में विश्वास होने लगा, धीरे धीरे वह Purulia-Burdwan बेल्ट का बड़ा नक्सली नेता बन गया ।
अर्नब पर आरोप लगे कि उसने IB के अफसर पार्था बिस्वास और अपने बचपन के मित्र को मौत के घाट उतार दिया था जिनकी लाशें PURULIA के जंगलो में मिली थी। वर्ष 2000 में अर्नब कि पूरी तरह से नक्सली दुनिया में धाक जम चुकी थी उसपर कई सरकारी अफसरों पर हमले के आरोप थे।
अर्नब कि दहसत अन्तः 2012 को समाप्त हो गयी जब उसे सुरक्षा बालो द्वारा एक AK 47 राइफल के साथ गिरफ्तार कर किया गया था । अर्नब अब नक्सलियों कि दुनिया में अर्नब नहीं कामरेड बिक्रम बन चूका था जिसका खौफ पूरा बंगाल महसूस करता था।
जब गिरफ्तारी के बाद अर्नब कि पहली फोटो वायरल हुई तो उसके दोस्तों को विश्वास ही नहीं हुआ कि यही उनका दोस्त अर्नब है, अर्नब के धसे हुए गाल, गड्ढो में घुसी आँखे सब बयान कर रही थी कि इतनी अच्छी जिंदगी छोड़ वह जंगलो में किस तरह से जीवन जीने को मजबूर था शायद एक बार नक्सलवाद के दलदल में धसने के बाद उसे एहसास हो ही गया होगा कि उसने कैसे अपनी ज़िन्दगी नर्क में धकेल दी है।