नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 25 मार्च 1971 के बाद असम में घुसने वाले सभी बांग्लादेशी प्रवासियों को अवैध करार दिया। SC के पांच जजों की बेंच ने बहुमत से यह फैसला सुनाया और कहा कि अब केंद्र और राज्य सरकारें तेजी से इन प्रवासियों की पहचान, खोज और उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया को तेज़ करें। इसका असर असम की संस्कृति और जनसांख्यिकी पर पड़ रहा है, जिसे रोका जाना बेहद ज़रूरी है।
क्यों आया यह फैसला?
यह फैसला सेक्शन 6A की वैधता को लेकर आया, जो नागरिकता अधिनियम में 1985 में जोड़ा गया था। ये अधिनियम असम समझौते के तहत लाया गया था, जो राजीव गांधी सरकार ने असम के छात्रों के साथ 1985 में किया था। छात्रों की मांग थी कि बांग्लादेश से हो रहे बड़े पैमाने पर अवैध प्रवास को रोका जाए। सेक्शन 6A को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी क्योंकि इसमें नागरिकता के लिए संविधान में बताए गए तिथियों से अलग तिथि तय की गई थी। कोर्ट ने इस पर सुनवाई की और बांग्लादेश से 25 मार्च 1971 के बाद आने वाले लोगों को अवैध प्रवासी घोषित कर दिया।
सेक्शन 6A क्या कहता है?
सेक्शन 6A के तहत जो प्रवासी 1 जनवरी 1966 से पहले असम आए, वे भारतीय नागरिक माने जाएंगे। वहीं, 1 जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच आए लोगों को 10 साल के बाद कुछ शर्तों के साथ नागरिकता दी जाएगी। फैसले में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एम.एम. सुंदरश, और जस्टिस मनोज मिश्रा की तरफ से कहा गया कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए लोगों को सेक्शन 6A की सुरक्षा का कोई लाभ नहीं मिलेगा।
कानूनी हथियारों का होगा जोरदार इस्तेमाल
SC ने यह भी कहा कि पांच कानून – असम से प्रवासियों को निष्कासन अधिनियम, 1950; विदेशी अधिनियम, 1946; विदेशी (प्रवासन न्यायाधिकरण) आदेश, 1964; पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920; और पासपोर्ट अधिनियम, 1967- अब एक साथ मिलकर काम करेंगे ताकि 25 मार्च 1971 के बाद आए अवैध प्रवासियों को असम से बाहर निकाला जा सके।
कानूनी प्रक्रिया की निगरानी खुद करेगा सुप्रीम कोर्ट
SC ने पाया कि 20 साल पहले दिए गए सरबानंद सोनोवाल केस के निर्देशों का पालन नहीं हो पाया था। अदालत ने कहा कि अब केवल 97,714 मामलों की सुनवाई चल रही है जबकि राज्य में लाखों बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस पूरे मामले की निगरानी खुद करने का निर्णय लिया है।
असम की पहचान बचाने की जंग
असम में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा लंबे समय से विवाद का केंद्र रहा है। बीजेपी और असम गण परिषद (AGP) इसे असम की संस्कृति और जनसांख्यिकी के लिए खतरा बताते हुए विरोध कर रही हैं। इस मुद्दे पर राजनीति भी जमकर हुई और बीजेपी को असम में कांग्रेस के मुकाबले काफी बढ़त मिली। अखिल असम छात्र संघ (AASU) ने इस फैसले को ‘ऐतिहासिक’ करार दिया है। संगठन के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा कि यह असम की पहचान और असम आंदोलन की जीत है। हालांकि, कुछ लोगों ने एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) में गलत डेटा को लेकर चिंता जाहिर की है। पूर्व एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा ने इस फैसले को ‘दुखद’ बताते हुए कहा कि लाखों विदेशियों के नाम एनआरसी में शामिल हैं, और इस मामले में देरी गंभीर समस्या बन सकती है।