नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में सजा मिलने के बाद हुए समझौते पर एससी एसटी एक्ट का मुकदमा रद्द कर दिया। दरअसल दोनों पक्ष में बाउंड्री वाल को लेकर हुए दीवानी विवाद का मामला था जिसे बाद में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज करा दिया गया था। इस मामले पर निचली अदालत ने जातिसूचक शब्दों का दोषी मानते हुए याचिकाकर्ता रामावतार को छह महीने कारावास व एक हजार रूपए का जुर्माना लगाया गया था। जिस हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा था।
सर्वोच्च न्यायलय ने कहा दीवानी व निजी मामले को ख़त्म करने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि किसी अदालत को ये लगता है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज हुआ अपराध, प्राथमिक रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है या अपराध पीड़ित की जाति को लक्षित करके नहीं हुआ है, तो अदालत मुकदमे की प्रक्रिया को रद्द करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।
कोर्ट ने कहा कि यह कानून एससी-एसटी वर्ग को उच्च जाति द्वारा अपमान और अत्याचार से बचाने के लिए है। कोर्ट को ऐसा करते वक्त एससी-एसटी वर्ग के लोगों के संरक्षण और उनके पुनर्वास के कानून के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। लेकिन अगर कोर्ट को लगे कि एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमा दीवानी या प्राइवेट प्रकृति का है या फिर अपराध पी़ि़डत की जाति के आधार पर नहीं किया गया है अथवा मुकदमा जारी रहना कानूनी प्रक्रिया का दुरपयोग होगा तो कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए समझौते के आधार आपराधिक मामला निरस्त कर सकता है।
यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि तय कानून के मुताबिक एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमा समझौते के आधार पर समाप्त नहीं हो सकता। हालांकि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से समझौते के आधार पर मामला बंद करने और आरोपित को राहत देने की दलील का जोरदार विरोध किया गया था।
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