बाँदा: बाँदा जिले में 20 वर्षो के बाद तीन लोगो को दलित अत्याचार व हत्या के मामले में कोर्ट ने रिहा करने का आदेश पारित किया है। सुनवाई के दौरान एससी एसटी कोर्ट बाँदा ने पाया कि अभियुक्तों के खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिला है व परिजनों, चश्मदीदों के बयानों में भी भारी विरोधाभाष है। जिसके बाद अपने फैसले में कोर्ट ने नामजद आरोपियों को रिहा करने का आदेश सुनाया है।
दरअसल लिखित तहरीर में दलित परिवार ने आरोप लगाया था कि 25 सितम्बर 2001 को करीब 9 बजे थाना कोतवाली देहात के अंतर्गत आने वाले ग्राम गुरेह निवासी राममिलन कोरी की दारु न पिलाने को लेकर उन्ही के गाँव के तीन ऊँची जाति के युवको ने हत्या कर दी थी। राममिलन के परिजनों द्वारा रामबाबू सिंह, संजय सिंह व कृष्ण गोपाल के खिलाफ नामजद तहरीर देते हुए हत्या करने व एससी एसटी एक्ट में FIR दर्ज कराई गई थी।
राममिलन के भाई राकेश कोरी ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि राममिलन घटना वाली रात करीब 9 बजे शौच के लिए गया था। काफी देर तक वापस न आने पर वह राममिलन को ढूंढने उसके मामा के साथ गया था। उन्होंने देखा कि नामजद आरोपी उसके भाई को लाठी डंडो से पीट रहे थे। उन्होंने जब छुड़ाने का प्रयास किया तो उन्होंने उसे व मामा को जातिसूचक गाली देकर भगा दिया था। जिसके बाद खोजने पर सुबह राममिलन की खेत में लाश मिली थी।
वहीं तहरीर के आधार पर पुलिस ने तीनो आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। जिसपर तीनो कथित आरोपियों द्वारा आरोपों से इतर कोर्ट में अपनी बेगुनाही की बाते कही गई थी। इसी बीच सुनवाई के दौरान जेल में ही रामबाबू सिंह की मौत हो गई थी। 20 वर्षो से अधिक समय तक चले इस मुक़दमे में कोर्ट ने पाया कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिल सका है जोकि तीनो आरोपियों को घटनास्थल पर मौजूद रहने की ओर इशारा करे। वहीं FIR में दर्ज तहरीर व सभी गवाहों में भारी विरोधाभाष है।
पुलिस की कार्यवाई में यह भी बात सामने आई कि पोस्ट मार्टम तक ले जाते हुए परिजनों को कातिल का नाम नहीं पता था। जिसकी पुष्टि गवाहों ने भी करी थी। मामले में आपसी रंजिश के चलते तीनो अभियुक्तों को फसाये जाने की बात सामने आई। ऐसे में विशेष न्यायधीश रामकरण (एससी एसटी कोर्ट) ने अपने आदेश में तीनो आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए रिहा कर दिया।
20 वर्ष बर्बाद होने से तबाह हुई ज़िन्दगी
मामले में 20 वर्षो तक मानसिक, शारीरिक व आर्थिक शोषण जेल चूका परिवार समझ नहीं पा रहा है कि फैसले पर खुश हुआ जाए या नहीं। संजय सिंह के परिजनों ने हमें बताया कि उनके परिवार ने जो झेला उसे वह शब्दों में साझा नहीं कर सकते है। आपसी रंजिश के चलते हत्या के मामले में नामजद करा दिया गया।
परिजनों पर हत्या के उठ रहे सवाल
एससी एसटी एक्ट में मिलने वाली धनराशि के चलते ऊँची जाति के युवको को नामजद करने की बाते ग्रामीणों द्वारा कही जा रही है। ऐसे में हत्या में परिजनों की संप्लिता पर भी अब सवाल उठाये जा रहे है। हालाँकि 20 वर्ष तक जेल में रहे निर्दोष अब किसी के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं चाहते है।