एटा: अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न अधिनियम (एससी-एसटी एक्ट) के तहत सरकार द्वारा पीड़ितों को न्यायिक प्रक्रिया के दौरान आर्थिक सहायता दी जाती है। हाईकोर्ट ने पिछले साल आदेश दिया था कि यदि किसी मामले में दोनों पक्ष समझौता कर लें, तो दी गई सहायता राशि वापस ली जाए। हालांकि, एटा में अब तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है, जहां मुआवजा राशि की वापसी की गई हो। सरकारी रिकॉर्ड इस मामले में पूरी तरह खामोश है।
हाईकोर्ट का आदेश और स्थानीय स्थिति
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि समझौते की स्थिति में मुआवजा वापसी की कार्रवाई अनिवार्य है। इसके बावजूद, एटा जिले में अब तक किसी भी मामले में यह आदेश लागू नहीं हुआ। समाज कल्याण विभाग और पुलिस की संयुक्त प्रक्रिया के बावजूद, मुआवजा वापसी का अनुपालन पूरी तरह से शून्य है।
मुआवजा वितरण का प्रावधान
एससी-एसटी एक्ट के तहत पीड़ितों को आर्थिक सहायता तीन किस्तों में दी जाती है। पहली किस्त एफआईआर दर्ज होने के बाद, दूसरी आरोप पत्र दाखिल होने के बाद, और तीसरी अदालत में दोष सिद्ध होने पर जारी होती है। इस एक्ट के तहत पीड़ितों को 85 हजार रुपये से 8.25 लाख रुपये तक की राशि देने का प्रावधान है। एटा जिले में इस वित्तीय वर्ष में 112 मामलों की सूचना समाज कल्याण विभाग को भेजी गई, जिनमें 146 पीड़ित शामिल हैं। अब तक 112 पीड़ितों को कुल 76.20 लाख रुपये की राशि प्रदान की जा चुकी है।
आंकड़े और जमीनी हकीकत
इस साल 112 मामलों में से केवल एक मामले में दोष सिद्धि तक पहुंचने के बाद तीसरी किस्त जारी की गई। बाकी मामलों में पहली और दूसरी किस्त जारी की गई है। सरकारी रिकॉर्ड में मुआवजा वापसी की प्रक्रिया का कहीं कोई उल्लेख नहीं है, जो प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है। एससी-एसटी एक्ट के तहत आर्थिक सहायता पीड़ितों के लिए राहत का काम करती है। लेकिन समझौते की स्थिति में मुआवजा राशि वापसी के आदेशों का पालन न होना सिस्टम की खामियों को उजागर करता है।