नई दिल्ली :- 2014 में विकास के नाम पर सरकार में आने वाली मोदी सरकार जाते-जाते विकास का नाम भूलकर आरक्षण का नाम जप रही है। 2014 में मोदी सरकार का नारा था “सबका साथ, सबका विकास” लेकिन कार्यकाल खत्म होते-होते मोदी सरकार के नारे कि हवा निकल गयी है।
मोदी सरकार एक के बाद एक आरक्षण कि घोषणा कर रही है। जहाँ एक तरफ सरकार ने 10% आरक्षण देने का काम किया है वहीँ अब मोदी सरकार निजी क्षेत्र में भी आरक्षित वर्ग को आरक्षण देने जा रही है, जिससे मेरिट में आने वाले लोगों को इससे बहुत बड़ा नुकसान होगा।
हम आपको बता दे कि “जब भी बीजेपी सरकार सत्ता में आती है, बीजेपी तब तब आरक्षण का कार्ड खेलती है”। 1989 में जब वी. पी. सिंह सरकार ने OBC आरक्षण लागू किया था तो बीजेपी वी. पी. सिंह सरकार में शामिल थी। इसके बाद 2000 में अटल सरकार ने संसदीय आरक्षण को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया था। उसी कार्यकाल में अटल सरकार ने 86वा संविधान संसोधन करके SC/ST के लोगों के लिए न्यूनतम योग्यता के प्रावधान के बार को खत्म कर दिया था।
इसी के साथ आप यह भी जान ले कि “इससे पहले जब मनमोहन सरकार 2006 में निजी क्षेत्रों में आरक्षण लागू करने जा रही थी तो “यूथ फॉर इक्वलिटी” ने देशभर में एक बहुत बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन में देशभर के मेडिकल स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया था, जिसके कारण देश की सभी स्वास्थ्य सुविधायें ठप पड़ गयी थी और सरकार ने “यूथ फॉर इक्वलिटी” से मिलकर ये वादा किया था कि वह निजी क्षेत्रों में आरक्षण नहीं लायेगी।
परन्तु आज जब मोदी सरकार निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण देने की बात कर रही है तो “यूथ फॉर इक्वलिटी” के अध्यक्ष “कौशल कांत मिश्रा” का कहना है कि “इसके पीछे सरकार कि मंशा ठीक नहीं है और वह इस प्रकार के फैसलों से समाज में बाँटने का काम कर रही है”।
कौशल कांत मिश्रा ने आगे कहा कि “मैं आरक्षण का विरोधी नहीं हूँ लेकिन मैं चाहता हूँ कि आरक्षण उस व्यक्ति को मिले जिसे सच में आरक्षण की आवश्यकता है। साथ ही मिश्रा ने कहा कि मैं आर्थिक आरक्षण का स्वागत करता हूँ, हमारी यूथ फॉर इक्वलिटी इसके लिए लम्बे समय से संघर्ष कर रही थी।
कौशल कांत मिश्रा ने आगे कहा कि “यदि सरकार निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण लाती है तो हम इसका बहुत बड़े पैमाने पर विरोध करेंगे”।