नई दिल्ली: पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने लेफ्ट व JNU गैंग पर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए जमकर आलोचना की है।
आज सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मार्कण्डेय काटजू ने कथित वामपंथी व सेकुलर पत्रकारों को रूढ़िवादी प्रथाओं के लिए निशाने पर ले लिया।
बता दें कि काटजू की पत्रकारों पर टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पूर्व चेयरमैन पद पर थे। आज उन्होंने कई ट्वीट बयान में सेकुलरिज्म व रूढ़िवादिता को लेकर कहा कि “सिद्धार्थ (द वायर), अरफा शेरवानी (द वायर), बरखा दत्त (पत्रकार), राणा आयूब (पत्रकार) जैसे लोग नियमित रूप से हिंदू कट्टरवाद की निंदा करते हैं, लेकिन कभी भी बुर्का, शरीयत, मदरसों और मौलानाओं की निंदा नहीं करते, जिसने मुसलमानों को पिछड़ा रखा और जिन्हें मुस्तफा कमाल पाशा (तुर्की के आधुनिक सेकुलर नेता) ने खत्म कर दिया था। वास्तविक धर्मनिरपेक्षता दोतरफा होना चाहिए ना कि एक तरफा।”
इसके बाद पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज ने मुस्लिम धर्मगुरुओं को निशाने पर लेते हुए कहा कि “जब मैं हिन्दू कट्टटरपंथ की निंदा करता हूं तो मुसलमान मेरी प्रशंसा करते हैं, लेकिन जब मैं बुर्का, शरिया, मदरसों और मौलानाओं जैसे सामंतवादी प्रथाओं और मुस्लिम रूढ़िवाद की निंदा करता हूं, तो ज्यादातर मुस्लिम मुझे सांप्रदायिक कहते हैं। यह काम नहीं करेगा।”
इसके आगे काटजू ने वामपंथी पत्रकारों के पत्रकारिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि “यूट्यूब पर अरफा शेरवानी व राणा आयूब नियमित रूप से हिंदू कट्टरवाद की निंदा करते हैं, लेकिन बुर्का, शरीयत, मदरसों और मौलानाओं की कभी निंदा नहीं करते हैं। मुस्लिमों को कमाल पाशा को अनुसरण करना चाहिए व आधुनिक होना चाहिए। यदि वे सचमुच में सेकुलर हैं तो उन्हें इन पिछड़ी प्रथाओं को खत्म करने व मुस्लिमों को आधुनिक होने की मांग करना चाहिए।”
इसके बाद उन्होंने मुख्यत: द वायर की अरफा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “अरफा का सेकुलरिज्म पाकिस्तान में हिन्दू मन्दिर के निर्माण का समर्थन करने तक सीमित है। यह शरिया, बुर्का, मदरसा के खात्मे की माँग तक नहीं जाएगा व मौलानाओं जो मुस्लिम को पिछड़ा रखते हैं।
फिर काटजू ने बहुसंख्यक रूढ़िवाद व राजनीतिक दलों को लपेटे में लेते हुए कहा कि “बहुसंख्यक रूढ़िवाद 2014 से काफी पहले शुरू हुआ था जोकि मुस्लिम वोटबैंक खातिर तथाकथित सेकुलर पार्टियों के लिए प्रतिक्रिया थी। जिसने प्राचीन प्रथाओं को बनाए रखा।”
अंत में काटजू ने JNU गैंग को निशाना बनाया और कहा कि जेएनयू के हीरो उमर खालिद, शेहला रशीद, कन्हैया कुमार जैसे लेफ्ट लिबरल हिंदू कट्टरवाद की कड़ी निंदा करते हैं, लेकिन बुर्का, शरिया, मदरसों और मौलानाओं की कभी निंदा नहीं करते हैं, जाहिर तौर पर संभावित चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक पर नजरें गड़ाए हुए हैं। यह उनके धर्मनिरपेक्षता की वास्तविकता है।”
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