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दलितों द्वारा गाँव में जला दिए गए सभी ब्राह्मण भूमिहारो के घर तो दलित स्कूल नहीं जाने देते, राशन नहीं देते व महिलाओं ने डर से छोड़ा गाँव

जमुई: बिहार के जुमई जिले में ब्राह्मण भूमिहारो के लम्बे समय से बॉयकॉट व उनके साथ जातिवाद की खबरे सामने आ रही हैं। चिराग पासवान के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले गाँव लखनपुर की यह घटना हैं जहां बसने वाले सभी उच्च जाति के घरो को अमानवीय जीवन जीने पर विवश होना पड़ रहा हैं।

गाँव के एक युवक हरीश कुमार(बदला हुआ नाम) ने हमें बताया कि उनके ग्राम लखनपुर में करीब 400 घर बहुजनों के हैं जिसमे 10 घर ब्राह्मण व भूमिहारो के भी हैं।

गाँव में जातिवाद को बढ़ावा व उच्च जाति से होने के कारण महा दलितों, दलितों व ओबीसी वर्ग ने इन्हे बॉयकॉट कर दिया हैं। उच्च जाति के लोगो के मुताबिक सभी लोग उन्हें उनके जनेऊ से लेकर उनके घर की महिलाओ को लेकर अभद्र टिप्पणी करते रहते हैं।

आगे हरीश ने हमें बताया कि दलितों ने उनके बच्चो को भी स्कूल जाने से रोक दिया हैं जिस कारण वह 21 वी सदी में भी शिक्षा से वंचित हैं। स्कूल के अलावा उच्च जाति से आने के कारण राशन की दुकानों से राशन भी नहीं लेने दिया जाता हैं जिससे घर में अनाज का भारी संकट पैदा हो जाता हैं।

ज्ञात होकि लॉक डाउन के समय मार्च महीने में एक ऐसी ही घटना के दौरान महा दलितों ने ब्राह्मण भूमिहारो के घरो में तोड़ फोड़ कर आग लगा दी थी।

जिसके कारण सभी 10 घरो में वास करने वाले ब्राह्मण भूमिहारो को 15 दिन के लिए गाँव छोड़ कर भागना पड़ गया था। पीड़ितों के मुताबिक दलितों ने यह इसलिए किया था ताकि ब्राह्मण भूमिहारो को वह गाँव से खदेड़ सके और उनकी जमीन हड़प लें।

जातिवाद से पूरी तरह त्रस्त इन परिवारों ने कई बार न्याय की गुहार लगाई तो 90 प्रतिशत से अधिक लोगो पर फर्जी एससी एसटी एक्ट थोप दिया गया।

साथ ही इन परिवारों की करीब 70 फीसदी जमीनों पर दलितों ने अपना कब्ज़ा भी जमा लिया हैं जिसका विरोध करने पर दलितों ने कई बार पीड़ितों को लाठी डंडो से पीट भी डाला हैं।

महिलाये दबंग दलितों के डर से नहीं रहती हैं गाँव में
सबसे चौकाने वाली बात यह निकल कर सामने आई हैं कि इन दस परिवारों में कोई भी महिला ( 5 वर्ष से लेकर 45 साल) अपने घरो में नहीं रहती हैं।

सभी को उनके परिजनों ने दबंगो के डर से रिश्तेदारों के यहाँ भेजा हुआ हैं जो लम्बे समय से गाँव से दूर रिश्तेदारों एक यहाँ रहने को मजबूर हैं।

परिजनों ने हमें आगे बताया कि दलित रात में घर का दरवाजा तोड़ कर घुस जाते हैं इसलिए उन्होंने अपने घर की महिलाओ को रिश्तेदारों के यहाँ भेजा हुआ हैं।

डॉक्टर इलाज नहीं करते
गाँव में डॉक्टरी करने वाले सभी डॉक्टर बहुजन समाज से आते हैं। पीड़ितों ने हमें बताया कि दिन में भी अगर बीमार पड़ने पर उन्हें बुलाया जाता हैं तो वह नहीं आते हैं। जिसके कारण उन्हें दूर शहर का रुख करना पड़ता हैं। जिससे कई बार तबियत अधिक बिगड़ जाती हैं।

साथ ही पीड़ितों का कहना हैं कि जब भी दलितों का मन करता हैं वह हमारे घर में घुस कर लूटपाट करके चले जाते हैं व उल्टा एससी एसटी एक्ट में मुकदमा भी दर्ज करा देते हैं।

पीड़ितों ने बताया कि दलितों के मुताबिक ब्राह्मण व भूमिहारो को गाँव में रहने का हक़ नहीं हैं व उनकी बहन बेटियों पर भी कई दबंग गलत नियत रखते हैं।

वर्षो से चल रहे इस बॉयकॉट व जातिगत प्रताड़ना पर न तो आज तक कोई नेता कुछ बोला हैं और न ही कोई मीडिया। बड़े बड़े मीडिया हाउस ऐसे केस उठाने से इसलिए डरते हैं क्यूंकि इसमें दलित का एंगल नहीं हैं। वही प्रशासन भी इस बॉयकॉट पर चुप्पी साधे हुए हैं।

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