छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिले बालाघाट के गांव की एक घटना जोर शोर से मीडिया में उठाई जा रही है जिसमें गांव के लोगों पर दुर्गा पूजा के लिए जबरन चंदा वसूली करने और चंदा ना देने पर सामाजिक बहिष्कार करने का मामला मेन स्ट्रीम मीडिया में बहुत जोर-शोर से उठा रही है। लेकिन हमारी टीम ने गांव में जाकर लोगों से बात की तो ग्राम प्रधान सहित सभी ग्रामीणों ने ऐसी किसी भी बात का होने से इंकार किया।
दरअसल लामता गांव के ग्राम प्रधान राधे लाल यादव जी ने हमें बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार भी दुर्गा पूजा का आयोजन करने के लिए एक मीटिंग बैठाई गई थी जिसमें गांव के सभी मुख्य सदस्यों को शामिल किया गया था जिनमें आरोप लगाने वाले लोग भी मौजूद थे। मीटिंग में सब ने सर्वसम्मति से प्रत्येक घर पर 200-200 रुपए चंदा लेने की बात हुई थी।
वहीं गोंड जाति जिनकी पूरी संख्या 37 घर के लगभग है उनमें से मात्र 3 लोगों ने कुछ लोगों के बहकावे में आकर जोकि GSU जनजाति संस्था से जुड़े हैं जिसे जिला पंचायत के पति संचालित करते हैं, जिनका नाम मूल सिंह मसराम धन सिंह परते देवेंद्र पप्पू कुमरे हैं, ने चंदा वसूलते समय यह कहकर विरोध किया कि हम हिंदू धर्म को नहीं मानते हमें मूर्ति पूजा से नहीं मतलब है।
हम चंदा नहीं देंगे। जबकि 34 गोंड जाति के घरों के लोगों ने चंदा सर्वसम्मति से दिया इसके बाद दोबारा मीटिंग हुई उस मीटिंग के बाद से ही इन्होंने यह फर्जी उत्पीड़न का केस ओमप्रकाश बागरे नर्मदा दवने वह संतोष कुमार बागरे के खिलाफ दर्ज कराया।
वहीं गाँव में एक भी परिवार सवर्ण जाति का नहीं है। साथ ही मीटिंग आयोजित करने वाले ओमप्रकाश बगरे, संतोष बागरे व नर्मदा दवने भी दलित समुदाय से आते है जिन्होंने स्वैच्छा से 200 रूपए दिया जाना तय किया था।
तीनो ने जबरन वसूली के आरोपों को निराधार बताया है व आज कल चल क्रिस्चियन मिसिनिरियो के संगठनों की ओर से दर्ज कराया गया फर्जी मुकदमा करार दिया है। हमें कई गोंड जनजाति के लोगो ने इस खबर को निराधार बताया है जिन्होंने अपनी मर्जी से 200 रूपए चंदा दिया था।