आरक्षित सीटो पर फंसा सपाक्स का पेंच

मप्र [भोपाल] :- सवर्ण आंदोलन के बाद अस्तित्व में आई सपाक्स पार्टी एमपी चुनाव में तीसरे फ्रंट का काम करती नजर आएगी क्योंकि यह नई नवेली पार्टी पूरे राज्य में अपने सभी उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में लड़ाने वाली है |

लेकिन सपाक्स अब एक नई मुसीबत में फंसता नजर आता दिख रहा है क्योंकि एमपी  की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें आरक्षित हैं जिसमें 35 सीटें अनुसूचित जाति व 47 अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए है |

और उन पर पार्टी के प्रत्याशियों को उतारना एक बड़ा धर्म संकट है क्योंकि इन सीटों पर सवर्ण नेता चुनाव नहीं लड़ सकते हैं | लिहाजा अब सपाक्स इन आरक्षित सीटों पर उन लोगों को चुनावी मैदान में उतार सकता है जो बड़े व चर्चित चेहरे पिछड़े व निचले तबकों से आते हैं |

क्षेत्रीय दलों के साथ हो सकता है गठबंधन

सपाक्स सुप्रीमो हीरालाल त्रिवेदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आरक्षित सीटों पर प्रत्याशियों के लिए राज्य के प्रमुख क्षेत्रीय दलों से भी बात की जाएगी | इन्हीं पार्टियों के सहारे सपाक्स अपनी चुनावी चाल का पांसा इस बार के एमपी विधान सभा चुनाव में देश की सबसे बड़ी दो पार्टियों यानी भाजपा व कांग्रेस के सामने फेंक रही है |

श्री त्रिवेदी की माने तो उनके इस मुहीम में पिछड़े व शोषित समाज के भी काफी लोग हमारी बातों से सहमति रख रहें हैं | उनका कहना है कि जो भी पिछड़े समाज के लोग आज भी सुविधाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं हम उनके लिए भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं |

और वो चाहते हैं कि उन आदिवासिओं व शोषितों को आरक्षण मिले जिसे उन्ही के समाज के सम्पन्न लोग पीढ़ी दरपीढ़ी पा रहे हैं | जिसके कारण इसका विस्तार अंतिम पंक्ति के लिए सही नहीं साबित हो पाया |

सवर्णों की नहीं, गरीब किसानों व व्यापारियों की पार्टी है सपाक्स                                                                                   

वैसे तो इस पार्टी का बड़ा रूप सवर्ण आंदोलन के बाद ही आया है इसी कारण इसे सवर्णों की पार्टी कहा जाने लगा था मगर पार्टी के अध्यक्ष ने यह साफ़ कहा कि देश में जिन नियम कानून से किसी के साथ विभेद उत्प्न्न होता है वैसे हर नियम के विरोध में वो स्वर उठाएंगे |

पार्टी का कहना है कि वह सिर्फ सवर्णों की बात नहीं करती है बल्कि गरीबों , किसानों, छोटे व्यापारियों व कामगारों की भी बात करती है |

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