कोलंबो: श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने राम सेतु पर पूजा अर्चना की। जिसकी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया जा रहा है।
दरअसल श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने गुरुवार को श्री लंका में राम सेतु का दौरा किया और महाशिवरात्रि के अवसर पर अपनी प्रार्थना की।
उच्चायुक्त ने रामसेतु में भारत और लंका के लोगों के बीच मजबूत बंधन के सुदृढ़ीकरण की प्रार्थना की। अपनी यात्रा के कुछ ही घंटे बाद भारतीय दूत ने उत्तरी प्रांत के थिरुकीतेस्वरम मंदिर का दौरा किया और शिवरात्रि पूजा में भाग लिया।
कोलंबो में भारत के उच्चायोग के अनुसार, भारत सरकार ने मंदिर के जीर्णोद्धार परियोजना को अंजाम दिया था। उच्चायुक्त ने उत्तरी प्रांत की यात्रा की शुरुआत पवित्र थिरुक्तेश्वरम् मंदिर में दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करके की। उन्होंने शिवरात्रि पूजा में भाग लिया और श्रीलंका और भारत के लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना की।
भारतीय उच्चायोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर कहा, भारत सरकार ने श्रीलंकाई रुपया (SLR) 326 मिलियन में मंदिर में एक पुनर्स्थापन परियोजना शुरू की थी।
भारत ने रामसेतु के वैज्ञानिक शोध को दी है मंजूरी:
वहीं रामसेतु के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए भारत सरकार के केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने जनवरी 2021 में ही एक रिसर्च को अनुमति दी है इस रिसर्च को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशियानोग्राफी के वैज्ञानिक करेंगे।
इस रिसर्च का मकसद यह पता लगाना होगा कि आखिर राम सेतु बना कैसे, राम सेतु की आयु, और कैसे इसका निर्माण किया गया था, यह निर्धारित करने के लिए एक अंतर्जलीय परियोजना इस साल शुरू की जा रही।
वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च
इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने कहा कि यह “रामायण” काल की आयु निर्धारित करने में मदद कर सकता है।” पुरातत्व पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत एक निकाय, ने पिछले महीने सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा, (एनआईओ) द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
प्रस्तावित अध्ययन, भूवैज्ञानिक काल और अन्य सहायक पर्यावरणीय डेटा के लिए पुरातात्विक पुरातनता, रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनेसिंस (टीएल) डेटिंग पर आधारित होगा।रेडियोमेट्रिक तकनीक का उपयोग संरचना की आयु का पता लगाने के लिए किया जाएगा, जिसमें मूंगा या प्यूमिस पत्थर शामिल हैं। कोरल में कैल्शियम कार्बोनेट होता है जो हमें संरचना की उम्र और निश्चित रूप से रामायण की अवधि का पता लगाने में मदद करेगा।
रामसेतु के सन्निकट पारितंत्र की भी खोज:
ऐतिहासिकता और रामायण की तिथि इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों के बीच एक बहस का विषय बनी हुई है। राम सेतु और उसके आसपास के क्षेत्र की प्रकृति और निर्माण को समझने के लिए वैज्ञानिक और पानी के भीतर पुरातात्विक अध्ययन करना प्रस्तावित है। यह परियोजना एक टीम के साथ-साथ डॉ सुंदरेश, एनआईओ के समुद्री पुरातत्व विभाग के साथ प्रमुख तकनीकी अधिकारी की देखरेख में होगी।