चेन्नई: डीएमके के यूथ विंग के सचिव उदयनिधि स्टालिन ने 21 मार्च को पुथियथलैमुरै टीवी को इंटरव्यू देते हुए कहा है कि ‘आगामी तमिलनाडु चुनाव आर्य एवं द्रविड़ नस्लों के बीच का युद्ध है।’
विधानसभा चुनावों का मिथिकीय आर्य एवं द्रविड़ नस्लों का युद्ध होना सुनने में आपको विचित्र लग सकता है परंतु ये डीएमके के इतिहास में अपनी तरह की कोई नई टिप्पणी नहीं है।
43 वर्षीय उदयनिधि स्टालिन द्रविड़ मुनेत्र कझगम के अध्यक्ष एम के स्टालिन के बेटे हैं और करुणानिधि के पोते हैं। यद्यपि 2 वर्ष पहले उनके पिता एम के स्टालिन ने एक टीवी इंटरव्यू के बीच कहा था कि अब उनके परिवार से कोई राजनीति में नहीं आएगा जिस पर उदयनिधि ने हामी भी भरी थी, परंतु अभी तमिलनाडु चुनाव आते ही पार्टी ने उन्हें अपनी यूथ विंग का सचिव नियुक्त करके त्रिप्लीकेन-चेपक से टिकट दे दिया है।
तब से उदयनिधि चुनाव प्रचार और जनसभाओं में लगे हुए हैं। विपक्षी पार्टियां और आसीन मुख्यमंत्री पालनिस्वामी डीएमके के भीतर इस परिवारवाद को चुनावी मुद्दा बना कर भुनाने के प्रयास में हैं और इन चुनावों को वह परिवारवादी राजनीति के अंत की लड़ाई बता रहे हैं।
राजनीति में करियर प्रारंभ ही कर रहे उदयनिधि का चुनावों को आर्य-द्रविड़ युध्द कहना डीएमके के भीतर राजनैतिक माइलेज लेने की एक परंपरा का हिस्सा है। अपने भाई अलागिरी से उत्तराधिकार के संघर्ष में लगे एम के स्टालिन ने 24 मार्च 2018 को इरोड कॉन्फ्रेंस में अपना भाषण प्रारंभ करते हुए कहा था कि “प्राचीन काल से आज तक जो लोग केवल 3% हैं वो कभी अपना रंग दिखाने से चूके नहीं। लेकिन यह 3% लोग संगठित हैं और इस प्रकार की एकता 97% लोगों में नहीं है जिससे आज तमिलनाडु में वर्णाश्रम धर्म एक बार फिर से अपना सर उठा रहा है।”
ध्यान देने वाली बात यह है कि स्टालिन ने यह बात पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनते ही अपने पहले भाषण में कही थी। इरोड कांफ्रेंस में स्टालिन ने तमिल ब्राह्मणों के विरुद्ध जब यह टिप्पणी की तब उस समय दो लाख से अधिक श्रोता मौजूद थे और आश्चर्य की बात यह भी है कि किसी राष्ट्रीय मीडिया चैनल या समाचार पत्र ने इसे रिपोर्ट नहीं किया।
क्षेत्रीय एवं नस्लीय भावनाएं भड़काने वाली ऐसी विचित्र टिप्पणियों के कारण विश्वविद्यालय के कैंपस भी इस विमर्श-संघर्ष और घृणा का मैदान बन गए हैं। आर्य-द्रविड़ दोनों संस्कृत के शब्द और अकादमिक शोध का विषय होने के साथ 100 वर्ष बाद आज भी राजनैतिक माइलेज का भी साधन बने हुए हैं।
पेरियार के जमाने से ही तमिलनाडु में नाजियों जैसी नस्ल विरोधी, जातिविरोधी टिप्पणियां होती रही हैं। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य हो कि यह 97 और 3 की शब्दावली पेरियार की ही है। प्रश्न यही है कि घृणा पैदा करने वाली टिप्पणियों की अनदेखी राष्ट्रीय मीडिया और राजनेता यूंही कब तक करते रहेंगे? सम्पन्न तमिल हिन्दू संस्कृति पर हो रहे ये आघात कब तक अनुत्तरित रहेंगे?