वाराणसी: ज्ञानवापी केस में परिसर के ASI सर्वेक्षण कराने के फैसले के बाद पक्षकार को धमकियां मिलने लगी हैं।
बीते 9 अप्रैल को औरंगाबाद निवासी हरिहर पांडेय को फोन कर शख़्स ने धमकी देते हुए कहा, “पांडे जी आप मुकदमा तो जीत गए हैं लेकिन आप और आपके सहयोगी मारे जाएंगे।”
धमकी भरे फोन के बारे में 75 वर्षीय हरिहर पांडेय ने वाराणसी के पुलिस कमिश्नर से मौखिक शिकायत की। वहीं पुलिस ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए दशाश्वमेध के सीओ ने घर जाकर हरिहर पांडेय का बयान लिया।
इसके बाद वाराणसी पुलिस की ओर से हरिहर पांडेय की सुरक्षा में दो पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए हैं। धमकी देने वाले के बारे में पुलिस जानकारी जुटा रही है।
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में याचिकाकर्ता हरिहर पांडे (तस्वीर में) ने कहा कि उन्हें मौत की धमकी मिलने के बाद सुरक्षा दी गई है। एक पुलिस अधिकारी ने न्यूज एजेंसी एएनआई के हवाले से कहा, ”हमने उसे गनर मुहैया कराया है। उसने अब तक कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं की है।
क्या है ज्ञानवापी प्रकरण:
गौरतलब है कि वाराणसी सिविल कोर्ट में 1991 में स्वायंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति के लिए याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण लगभग 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल आक्रांता औरंगजेब ने 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था और इसके अवशेषों का इस्तेमाल एक मस्जिद के निर्माण के लिए किया, जिसे मंदिर भूमि के एक हिस्से पर ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है। याचिकाकर्ता ने अदालत से मंदिर की जमीन से मस्जिद हटाने के निर्देश जारी करने और मंदिर ट्रस्ट को अपना कब्जा वापस देने का अनुरोध किया था।
याचिका में कहा गया है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम केस पर लागू नहीं था क्योंकि मस्जिद का निर्माण आंशिक रूप से ध्वस्त मंदिर के ऊपर किया गया था और मंदिर के कई हिस्से आज भी मौजूद हैं। 1998 में, अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया कि मंदिर-मस्जिद विवाद को सिविल अदालत द्वारा स्थगित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह कानून द्वारा वर्जित था।
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत में कार्यवाही पर रोक लगा दी जो पिछले 22 वर्षों से जारी थी। फरवरी 2020 में, याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई फिर से शुरू करने की दलील के साथ फिर से निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया क्योंकि हाईकोर्ट ने पिछले छह महीने से स्थगन को नहीं बढ़ाया था।