वाराणसी: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और संप्रेषण विभाग की हेड डाॅ शोभना नर्लिकर के खिलाफ विभाग के ही छात्रों ने मोर्चा खोल दिया और पिछले 6-7 दिनों से प्रोफेसर को बर्खास्त करने को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहें हैं। छात्रों का आरोप है कि महिला प्रोफेसर विभाग के छात्रों के साथ गाली गलौज करते हुए अभद्रता पूर्ण व्यवहार करती हैं और विरोध करने पर झूठे छेड़छाड़ और एससी एसटी एक्ट में फंसाने की धमकी देती हैं।
छात्रों का कहना है कि प्रोफेसर शोभना नर्लिकर के तानाशाही व्यवहार के कारण छात्रों का पठन-पाठन भी सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा हैं। जब भी कोई छात्र किसी परेशानी या समस्या के समाधान के लिए प्रोफेसर के आफिस में जातें है तो प्रोफेसर शोभना नर्लिकर छात्रों को माॅं-बहन की गंदी-गंदी गालियां देती हैं और कैरियर बर्बाद करने की धमकी देती हैं।
इतना ही नहीं विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर पत्रकारिता विभाग की हेड प्रोफेसर डाॅ शोभना नर्लिकर को उनके तानाशाही रवैये और दुर्व्यवहार के लिए बर्खास्त करने और काउंसलिंग कराने की मांग की है। छात्रों का कहना है कि शोभना नर्लिकर के विभागाध्यक्ष रहते हुए छात्रों का भविष्य सुरक्षित नहीं है और न ही उनके रहते ही शिक्षण कार्य संभव हो पाएगा।
दस साल पहले भी दर्ज कराया था झूठा मुकदमा
आपको बता दें कि वर्तमान में पत्रकारिता और संप्रेषण विभाग की हेड डाॅ शोभना नर्लिकर ने विभाग के तत्कालीन हेड प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ 16 मार्च 2013 को यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड को शिकायत पत्र देकर आरोप लगाया था कि प्रोफेसर के इशारों पर विभाग के छात्र-छात्राएं उन्हें जातिसूचक गालियां देते और उनके अश्लील फोटो खींच कर उन्हें प्रताड़ित करते हैं।
इतना ही नहीं प्रोफेसर डाॅ. शोभना नार्लीकर ने धमकी दी कि अगर प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई नहीं की गई, तो वह आमरण अनशन पर बैठ जायेंगी। जिसके बाद यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने असिस्टेंट प्रोफेसर के शिकायत पत्र को लंका थाने फारवर्ड कर दिया था और लंका थाने में हेड प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर किया गया था।
जिसके बाद वाराणसी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) संजीव कुमार सिन्हा ने सुनवाई के दौरान सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों देखने और सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि पीड़िता द्वारा शिकायत शैक्षणिक विवादों के चलते दर्ज कराई गई है और वह पहले भी अन्य फैकल्टी मेंबर्स के खिलाफ भी आरोप लगा चुकी हैं, जिसके बाद कोर्ट ने 9 साल के लंबे समय के बाद प्रो. शिशिर बसु को सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
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