लखनऊ: मोदी सरकार ने केंद्र के कोटे के अंतर्गत मेडिकल एजुकेशन में भी पिछड़ा समुदाय को आरक्षण देने की घोषणा कर दी है। प्रधानमंत्री की इस घोषणा को विपक्षी दलों ने राजनीति से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने यह घोषणा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की है, जिससे भाजपा को चुनावी लाभ मिल सके। साथ ही विपक्षी नेताओं में इसका श्रेय लेने की होड़ लगी है।
दूसरी तरफ मेडिकल शिक्षा में भी आरक्षण बढ़ा देने से देश के कई सवर्ण संगठन भाजपा सरकार के विरोध में आ गए हैं। वे इस मुद्दे पर भारत बंद की तैयारी कर केंद्र के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। जिससे अब चुनावी लाभ के लिए खेला गया यह दांव भाजपा को उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है।
अखिल भारतीय सवर्ण मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीव सिंह ने कहा कि सवर्ण वर्ग भाजपा का कट्टर समर्थक रहा है। केंद्र से लेकर विभिन्न राज्यों तक में भाजपा की सरकार लाने में सवर्ण वर्ग उसके लिए थोक वोट बैंक की तरह काम करता रहा है। लेकिन सवर्णों के इस समर्थन के बदले में उसे क्या मिला? आरक्षण के नाम पर हर जगह उसके अवसरों में कटौती की जा रही है।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने कहा कि समय के साथ इस आरक्षण को खत्म किए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए था, लेकिन देखने में आ रहा है कि कुछ वर्गों ने इसे अपने स्वार्थसिद्धि का हथियार बना लिया है। कुछ दलों ने जातीय आधार पर समाज को तोड़कर अपनी राजनीति चमकाई थी। भाजपा की केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि वह नए समाज के अनुसार सबके लिए एक समान अवसरों को उपलब्ध कराएगी और आरक्षण के नाम पर हो रहे भेदभाव को दूर करेगी, लेकिन अब भाजपा भी इसे आगे बढ़ाने का काम कर रही है। इससे उनके जैसे करोड़ों सवर्णों का भाजपा से मोहभंग हुआ है। संजीव सिंह ने कहा कि सवर्ण मोर्चा अपनी विचारधारा के समान काम करने वाले अन्य संगठनों से विचार-विमर्श कर राष्ट्रीय स्तर पर भारत बंद आयोजित करने की तैयारी कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
प्रयागराज के पूर्व सैनिक सरस त्रिपाठी ने कहा कि संविधान में केवल दस वर्षों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। लेकिन पहले यह राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के साथ शुरू होकर नौकरी, पदोन्नति, शिक्षा और अब स्वास्थ्य सेवाओं में भी पहुंचती जा रही है। इसका दायरा केवल सामान्य नौकरियां ही न होकर इसरो और शोध संस्थान तक होने लगे हैं, जिससे देश की वैज्ञानिक प्रतिभा पर भी आरक्षण का दंश पड़ने लगा है। यह केवल कुछ लोगों को नौकरी या शिक्षा न मिलने वाली बात नहीं, बल्कि देश के विकास को ही पीछे धकेलने की साजिश है। आरक्षण का लाभ उन लोगों को भी मिल रहा है जो इसके कतई हकदार नहीं हैं। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति अब उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर रखती है लेकिन केवल राजनीतिक स्वार्थ में इसे लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को एक आयोग का गठन कर समाज के असली वंचितों की पहचान कर उनकी मदद करनी चाहिए। केवल राजनीतिक लाभ लेने के लिए आरक्षण का लाभ उठाने की सोच से बाहर आना चाहिए।
कांग्रेस ने बताया चुनावी दांव
कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा कि उनकी नेता सोनिया गांधी ने साल भर पहले ही पत्र लिखकर पिछड़े वर्गों को मेडिकल सेवाओं में आरक्षण देने की मांग की थी। लेकिन भाजपा ने इसे अब तक लागू नहीं किया, लेकिन अब जब कि उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा को अपनी हार सामने दिखाई पड़ रही है, वह आरक्षण देकर ओबीसी समुदाय को अपने पक्ष में जोड़ने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने चार साल पहले यही आरक्षण दे दिया होता तो आज 15-16 हजार युवाओं को इसका लाभ मिल चुका होता। कांग्रेस नेता ने कहा कि केवल चुनाव जीतने के लिए की गई यह कोशिश भाजपा की हार को टाल नहीं सकेगी।
नियो पॉलिटीको(फलाना दिखाना) को अब अपने कार्यो को जारी रखने के लिए हर माह करीब 2.5 लाख रूपए की आवश्यकता है। अन्यथा यह मीडिया पोर्टल अगस्त माह से बंद हो जायेगा। आप सभी पाठको से निवेदन है कि इस पोर्टल को जारी रखने के लिए हमारा सहयोग करें।
UPI: NeoPoliticoEditor@okicici
Gpay/Paytm: 8800454121
OR Become a Patron! (Donate via Patreon)
Paypal: https://paypal.me/falanadikhana?locale.x=en_GB…
Young Journalist covering Rural India, Investigation, Fact Check and Uttar Pradesh.