नई दिल्ली: हमने अपने आस-पास देखा होगा की लोग आपस मे इस बीमारी के बारे मे बात करने मे असहज महसूस करते है तथा बिना उचित जानकारी के झूठी बातो पर यकीन कर लेते है |
वर्तमान समय मे भी कुछ इससे मिथक हमारे समाज मे मौजूद है,जिन्हे पढ़े-लिखे लोग भी सही मानते है |
साल 2016 में 20 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि एचआईवी संक्रमण हाथ मिलाने, गले मिलने से फ़ैलते हैं. उनका यह भी मानना था कि यह इंसान के लार और पेशाब के ज़रिए भी फ़ैलता है.
लेकिन सच ये है कि छूने, पसीने, थूक और पेशाब से एचआईवी नहीं फैलता.
तो फिर ये कैसे नहीं फ़ैलता?
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- एचआईवी कभी भी एक ही वातावरण में सांस लेने से नहीं फ़ैलता.
- गले मिलने, किस करने और हाथ मिलाने से भी यह नहीं फ़ैलता है.
- एक ही बर्तन में खाने से नहीं फ़ैलता.
- एक ही नल से नहाने से ये नहीं फ़ैलता.
- निजी वस्तुएं एक दूसरे के साथ साझा करने से एचआईवी नहीं फ़ैलता.
- जिम में कसरत करने के उपकरणों को साझा करने से ये नहीं फ़ैलता.
- टॉयलट सीट छूने, दरवाज़े की कुंडी या हैंडल छूने से ये नहीं फ़ैलता.
- एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में मौजूद तरल पदार्थ यानी ख़ून, वीर्य, योनि के तरल पदार्थ या दूध से फ़ैल सकता है.
वर्जिन के साथ संबंध बनाने’ की दलील अफ़्रीका के कुछ इलाक़ों, भारत और थाईलैंड के कुछ जगहों में दी जाती थी लेकिन ये असल में ख़तरनाक़ है.
इस सोच ने कई युवतियों के बलात्कार और कुछ मामलों में बच्चों को भी एचआईवी संक्रमण के ख़तरे में डाल दिया.
माना जाता है कि इस सोच की जड़ें 16वीं सदी के यूरोप से जुड़ी हैं जब लोगों को सिफ़लिस और गोनोरिया जैसी बीमारियां होने लगीं थीं. इस तरह के क़दम इन बीमारियों के इलाज में भी कारगर साबित नहीं होते.जहां तक प्रार्थनाओं और धार्मिक पूजापाठ का सवाल है वो लोगों को मुश्किल परिस्थितियों से जूझने की ताक़त तो देते हैं लेकिन इससे शरीर के भीतर का वायरस ख़त्म करने में मदद नहीं मिलती.