तथ्य: पिछले 200 सालों से जर्मनी की टॉप युनिवर्सिटी में पढ़ाई जा रही हैं संस्कृत में रामायण-गीता की पुस्तकें

बर्लिन (जर्मनी) : 1819 से ही यूरोपीय देश जर्मनी में संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दिया गया था, जर्मनी के संस्कृत विद्वान मैक्समूलर के नाम पर दिल्ली  सहित कई जगह बनाए गए हैं मैक्स मूलर भवन |

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MAX MULLER BHAWAN DELHI

कांसुलेट जनरल ऑफ़ इंडिया म्युनिक जर्मनी के आधिकारिक स्त्रोतों से हमनें संस्कृत के बारे में जानकारी प्राप्त की है जिसमें कई रोचक तथ्य निकलकर आए हैं |

भारतीय भले ही संस्कृत को हल्के में ले रहे हों पर दुनिया के कई देशों नें इसमें शोध करना शुरू कर दिया है कई देशों में इसे पढ़ाया भी जाता है | ऐसे ही यूरोप का देश है जर्मनी जहाँ आज से नहीं पिछले 200 सालों से संस्कृत पढ़ाया जा रहा है |

संस्कृत के पहले जर्मन विद्वान हेनरिक रोथ (1620-1668) थे जिन्होंने भारत में रहने के दौरान संस्कृत भाषा में मास्टर डिग्री हासिल की थी ।

फ्रेडरिक वॉन श्लेगल (1732-1829) एक अन्य इंडोलॉजिस्ट थे जो भारतीय भाषाओं, साहित्य और दर्शन की प्रणालियों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित हुए। भारत और इसकी संस्कृति में इस गहरी रुचि ने आखिरकार जर्मन विश्वविद्यालयों में इंडोलॉजी और तुलनात्मक भाषाविज्ञान के अध्ययन की नींव डाली। उनके भाई, अगस्त विल्हेम वॉन श्लेगल 1819 में बॉन विश्वविद्यालय में संस्कृत के पहले प्रोफेसर बने, और इसी कारण से वो एक जर्मन विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी के संस्थापक भी बने। दिलचस्प बात यह है कि यूरोप में छपी (लगभग 1820) संस्कृत की पहली पुस्तक भगवद्गीता थी, जिसको खुद श्लेगेल ने लैटिन अनुवाद भी किया था।

एक अन्य इंडोलॉजिस्ट, जॉर्ज फोर्स्टर (1754-1794) ने कालीदास द्वारा रचित 5वीं शताब्दी के नाटक शकुंतलम का जर्मन में अनुवाद किया। इस अनुवादित नाटक ने भारतीय संस्कृति और भाषाओं को जानने और उनका अध्ययन करने के लिए जर्मनी में रुचि पैदा की।

मैक्स मुलर (1823-1900) सबसे प्रसिद्ध इंडोलॉजिस्ट और संभवतः सभी समय के सबसे प्रतिभाशाली संस्कृत विद्वान में से एक हैं। उन्हें पवित्र हिंदू ग्रंथ, ऋग्वेद के जर्मन अनुवाद का श्रेय दिया जाता है। उनके सम्मान में, भारत में गोएथे संस्थानों को “मैक्स मुलर भवन” के रूप में जाना जाता है। आज, इंडोकोलॉजी 12 जर्मन विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है और कुछ फैकल्टी में ये पढ़ाई 200 सालों से भी अधिक हो चुकी है ।

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