नई दिल्ली :- भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन ने गोपनीय तरीके से पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिला दी है। हम आपको बता दें कि इस विवाद से पहले श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे थे।
विक्रमसिंघे की राजनीतिक पार्टी यूएनपी ने सिरिसेन की पार्टी के साथ मिलकर वर्ष 2015 में सरकार बनाई थी, जिससे महिंदा राजपक्षे सत्ता से बाहर हो गए थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक विक्रमसिंघे की राजनीतिक पार्टी यूएनपी के साथ शामिल मैत्रीपाला सिरिसेन के यूपीएफए गठबंधन ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसके कारण विक्रमसिंघे की सरकार अल्पमत में आ गई है। लेकिन विक्रमसिंघे ने कहा है कि वह अभी भी प्रधानमंत्री हैं और संसद में अपना बहुमत साबित करेंगे।
हम आपको बता दें कि अभी कुछ दिन पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन ने भारत की जाँच एजेंसी रॉ पर आरोप लगाया था कि रॉ उनकी हत्या करवाना चाहती है। जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे फ़ोन पर बात की थी और इस मामले को शांत किया था।
विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी किये गए बयान में उन्होंने आशंका जताई है कि दोनों नेताओं के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है। देखने वाली बात यह है कि अभी कुछ दिन पहले ही श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भारत के दौरे पर आये थे। जहाँ उन्होंने चीन को नजरअंदाज करते हुए, भारत के साथ कई महत्वपूर्ण फैसले लिए थे। रानिल विक्रमसिंघे को जहाँ भारत का समर्थक माना जाता है, वहीँ महिंदा राजपक्षे को चीन का हमदर्द मन जाता है।
रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका में चीन के बढ़ते हुए निवेश पर भी आपत्ति जताई थी और उससे पोर्ट लेकर भारत को दे दिया था। भारत के दौरे पर आने से पहले विक्रमसिंघे सरकार ने चीन की एक कंपनी का निर्माण ठेका रद करके उसे भारतीय कंपनी को भी दिया था। अब इस संकट से भारत के हित भी ख़राब हो सकते हैं इसलिए भारत भी इस मामले पर अपनी नजर बनाये हुए है। वहीँ, फलाना दिखाना के विदेशी मामलों के एक्सपर्ट नीरज झा का मानना है कि इस राजनितिक संकट के पीछे चीन का हाथ हो सकता है।