अमरावती: आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम में एक इंस्पेक्टर सी वेणुगोपाल राव को दलित को किक मारना इतना महंगा पड़ गया कि उसकी गिरफ़्तारी सहित उसे निलंबित कर दिया गया। इंस्पेक्टर को एससी एसटी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है।
दरअसल दो पडोसी के विवाद को लेकर एक दलित फरियादी पुलिस इंस्पेक्टरके पास थाने आया था। जब वह पूरे मामले को बयां कर रहा था तब इंस्पेक्टर को इतना गुस्सा आया कि वह उसे पीटने लगा। इस दौरान उसने दलित शख्स को पैर से भी मार दिया। वीडियो में इस शख्स की मां उसे बचाते दिख रही है।
वहीं किसी ने इस प्रकरण का वीडियो बना लिया जिसके बाद इंस्पेक्टर को निलंबित कर गिरफ्तार भी कर लिया गया। इंस्पेक्टर द्वारा दलित को मारा जाना बेहद निंदनीय कार्य है।
इसी कड़ी में श्रीकाकुलम के पुलिस अधीक्षक अमित बरदार ने बताया कि काशीबुग्गा के पुलिस इंस्पेक्टर सी वेणुगोपाल राव को दलित व्यक्ति को किक मारने के चलते एससी एसटी एट्रोसिटी (प्रिवेंशन) एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्हें निलंबित भी कर दिया गया है।
वहीं दूसरी घटना उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर की है जहां एक दलित दरोगा ने एक ब्राह्मण फौजी की पीट पीटकर चमड़ी ही उधेड़ दी। रात भर हुई बर्बर पिटाई से व्यक्ति का पूरा हिस्सा ही नीला पड़ गया था। जिसपर लिखी हमारी रिपोर्ट पर संज्ञान तो लिया गया लेकिन मात्र दरोगा को लाइन हाज़िर कर छोड़ दिया गया था।
दोनों ही किस्सों में पुलिस की मारपीट को सही नहीं ठहराया जा सकता है। वहीं गाज़ीपुर घटना में बुरी तरह पीटे गए फौजी की पिटाई का लेवल भी बेहद बर्बर था जोकि पीड़ित की आई कई फोटो व वीडियो में देखा जा सकता है। मान भी ले कि पीटे गए व्यक्ति की कोई गलती भी थी तो क्या कानून पुलिस वालो को इतनी बर्बर पिटाई की इज़ाज़त देता है?
लेकिन दोनों केस में हुई अलग अलग कार्यवाई ने किस तरह विक्टिम कार्ड का बोलबाला दिखाया है वह सबके सामने है। गिरफ्तार तो दूर दरोगा को निलंबित तक नहीं किया गया।
भारत में दलित की ऊपर अत्याचारों को ही अत्याचार माना जाता है बाकी अगर आप दलित नहीं है तो आपकी आवाज उठाने को न तो मीडिया है और न ही कोई सरकार। अगर मीडिया यह मामला उठा भी दे और दलित को कटघरे में खड़ा कर दे तो पुलिस द्वारा उसे इतना धमकाया जाता है कि वह कभी ऐसा करने की सोच भी न सकता है।
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