नई दिल्ली: विश्व हिन्दू परिषद ने मांग की है कि मतांतरित ईसाई व मुसलमानों को जनजातियों की सूची से बाहर किया जाए।
विश्व हिन्दू परिषद के प्रन्यासी मण्डल ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके सरकार से मांग की है कि वह संविधान में आवश्यक संशोधन कर मतांरित जनजातीय लोगों को जनजातियों की सूची से बाहर करे ताकि वास्तविक जनजातियों को उनके अधिकार मिल सकें। अनेक न्यायालयों के साथ सर्वोच्च न्यायालय भी इस बारे में अपनी व्यवस्था दे चुके हैं। जनजातियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से आखिर कब तक वंचित रखा जाएगा।
विहिप ने कहा कि भारत में हिन्दू समाज हमेशा से नगरों, ग्राम या वनों में रहता रहा है। भले ही उनकी आध्यात्मिक परंपरा के अनुसार पूजा पद्धति में विविधता रही हो लेकिन उनका अंतर्मन सदैव एक रहा है। धर्मांतरण ही राष्ट्रांतरण है यह कहा जाता है। भारत को कमजोर करने के लिए गरीब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को लालच व दबाव से धर्मान्तरित करने का प्रयास किया जाता है। अनुसूचित जातियों के नाम नहीं बदलते हुए भी धर्मांतरण बड़ी तीव्रता के साथ किया जा रहा है।
संगठन के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने बताया कि अनुसूचित जनजातियों के धर्मांतरित लोगों की संख्या केवल 18 प्रतिशत है पर आरक्षण का 80 प्रतिशत लाभ यही वर्ग ले जाता है। संविधान में जरूरी संशोधन के बाद आरक्षण के लाभ जनजातियों के योग्य लोगों को प्राप्त हो सकेंगे लेकिन, मतांरित होने के बाद भी वे दोनों प्रकार के लाभ उठा रहे हैं।
केरल बनाम मोहन के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय देते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि जनजाति का कोई व्यक्ति अपने मूल धर्म त्याग कर दूसरा धर्म अपना लेता है और अपनी परंपराएं, रीति रिवाज, पूजा पद्धति एवं संस्कारों को छोड़ देता है तो वह जनजाति नहीं माना जाएगा।
विश्व हिंदू परिषद ने केंद्र सरकार से यह मांग की है कि संविधान में आवश्यक संशोधन करके मतांतरित जनजातीय लोगों को जनजातियों की सूची से बाहर करना चाहिए ताकि वास्तविक जनजातियों को उनके अपने अधिकार मिल सकें।