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भारत में आरक्षण आने के बाद बनी 5000 से अधिक नई जातियां, रिपोर्ट में खुलासा हर हफ्ते बनी नई जाति

रिपोर्ट: क्या आपको मालूम है कि भारत में रोज हर हफ्ते एक नई जाति पैदा हो जाती है ? यह हम नहीं बल्कि आंकड़े कह रहे है। हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने मिलकर इस पर एक शोध को अंजाम दिया है जिसमे उन्हें बेहद चौकाने वाले आंकड़े हाथ लगे है।

इस शोध में अंग्रेज़ो के समय पर किये गए कास्ट सेंसस, Socio Economic and Caste Census 2011, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसुचित जनजाति आयोग, मंडल कमिसन, नेशनल सैंपल सर्वे रिपोर्ट 2006 व अन्य प्रमाणित श्रोतो को आधार बनाया गया है।

यह रिपोर्ट इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि आखिर क्यों भारत में जातिवाद बढ़ रहा है व आरक्षण की भूख व जाति आधारित लाभों ने देश को कितने गर्त में डाल दिया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में छात्रों को महीनो का समय लग गया।

रिपोर्ट तैयार करने की शुरुआत के लिए सबसे पहले देश में पूर्णतः जाति आधारित सेंसस को टटोलना शुरू किया गया। अंग्रेजी हुकूमत के समय वर्ष 1901 में कई पैमानों को अपनाते हुए पहला पूर्ण कास्ट सेंसस किया गया। 1901 कास्ट सेंसस की रिपोर्ट के मुताबिक उस समय के ब्रिटिश भारत जिसमे बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे, कुल 1646 जातियाँ मौजूद थी। इसमें सभी वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैस्य व शूद्र शामिल थे।

वही वर्ष 1931 में ‘जॉन हेनरी हटन’ के नेत्रृत्व में आई अगली रिपोर्ट ने जातियों के विकास को लेकर कई चौकाने वाले खुलासे तक किये थे। रिपोर्ट में हटन ने पाया था कि बीते हर दस सालों में जातियां विकसित होकर अपने से ऊपर वाले वर्ग में चली जाती है। इसके लिए उन्होंने एक उदहारण भी पेश किया। उन्होंने बताया कि ऐसे कई वाकये हमें देखने को मिले है जिसमे कई लोग ब्राह्मण समुदाय में परिवर्तित हो गए है जो दस साल पहले राजपूत वंश में थे।

वही कई शूद्र भी दस सालों में राजपूत वर्ण में पहुंच गए है। इसका सीधा मतलब यह था कि दलित राजनीती शुरू होने से पहले लोग अपने कर्म के आधार पर अपना वर्ण बदल लेते थे जिसे किसी भारतीय नहीं बल्कि ब्रिटिश कास्ट सेंसस अफसर ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया था।

साथ ही 1931 को आई इस रिपोर्ट में पाया गया कि अब तक भारत में जातियाँ बढ़ कर 4147 के आंकड़े तक पहुंच गई थी। यह पिछली रिपोर्ट से लगभग 3 गुना अधिक थी।

जिसके बाद आजाद भारत में वर्ष 1950 को हुई जन गणना में सरकार ने पाया कि नए भारत जिसमे पाकिस्तान, बलूचिस्तान व बांग्लादेश को हटा देने के बावजूद कई अन्य जातियां विकसित हो गई है। छपी रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति में कुल 1108 जातियां व अनुसूचित जनजाति में कुल 744 जातियां बन गई थी। हालाँकि ओबीसी व सामान्य वर्ग में आने वाली जातियां इसमें प्राप्त नहीं हुई।

आगे 1980 को गठित मंडल कमिसन द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में ओबीसी वर्ग में 3743 जातियाँ पाई गई। दिलचस्प बात यह है कि 2006 को आई नेशनल कमिसन फॉर बैकवर्ड क्लासेज की रिपोर्ट में पाया गया था की वर्ष 2006 आते आते कुल ओबीसी जातियां बढ़ कर 5013 हो गई है। यह मंडल कमिसन के बताये आंकड़ों से कहीं अधिक थी।

इसके बाद वर्ष 2008 में आई एससी कमिसन की एक रिपोर्ट में पाया गया कि एससी की कुल जातियां बढ़ कर 1208 हो गई है जोकि पिछली रिपोर्ट से अधिक थी। वही इन सब में कही भी हमें सामान्य वर्ग में आने वाली जातियों का आंकड़ा प्राप्त नहीं हुआ।

वर्ष 2006 के बाद से हमें ओबीसी में आने वाली जातियों, वर्ष 2008 के बाद से एससी वर्ग में आने वाली जातियों व वर्ष 1950 के बाद से एसटी वर्ग की जातियों का आंकड़ा लाख खोजने पर भी नहीं मिल पाया। लेकिन इन प्राप्त आंकड़ों से यह तो तय है की वर्ष 2019 तक इन जातियो की संख्या में भारी बढ़ोतरी जरूर दर्ज हुई होगी।

Year 1950 1980 2006 2008
SC 1108 Not Available Not Available 1208
ST 744 Not Available Not Available Not Available
OBC Not Applicable 3743 5013 Not Available
General Not Available Not Available Not Available  Not Available

वहीं इन सभी आंकड़ों को अगर मिला दिया जाए जोकि वर्ष 2008 से अपडेट नहीं हुए है तो भी आपके होश उड़ जायेंगे। वर्ष 2008 तक भारत में कुल जातियां करीब 6955 हो चुकी थी जिसमे सामान्य वर्ग की जातियों को गिना ही नहीं गया है। वहीं इन मामलो में कोर्ट से लेकर राजनीती तक एक्टिव रहने वाली संस्था युथ फॉर इक्वलिटी के अपने खुद के अध्यन के मुताबिक भारत में कुल जातियों की संख्या 9000 हज़ार से अधिक है जिसमे सामान्य वर्ग को भी शामिल किया गया था।

अगर वर्ष 1901 की रिपोर्ट से आज के हालातो को मिलाये तो आप पाएंगे की भारत में पिछले सौ सालों में करीब 5000 नई जातियाँ पैदा हो गई है। वहीं इनमे सबसे बड़ा उछाल आज़ादी के बाद मिलने वाले आरक्षण के बाद देखा गया है। भारत में जातियाँ घटने के बजाये अपना सर उठा रही है। हर जाति अपने को पिछड़ा घोषित करने में लगी।

Year 2008
SC 1208
ST 744
OBC 5013
General Not Available
Total 6955

Data: ST data not updated after 1950, OBC data not updated after 2006 and General data not included

इनमे सबसे बड़ा योगदान दलित संगठनों का है जो अपना वोट बैंक साधने के चक्कर में नई नई जाति पैदा करने पर जोर दे रहे है। ऐसे में जहां हर हफ्ते एक नई जाति का भारत में जन्म हो रहा हो तो वहां जातिवाद के जंजाल को आप कैसे कम कर सकते है। आगे इन्ही आंकड़ों के ट्रेंड को फॉलो करें तो अगली रिपोर्ट आने तक हमें कुल जातियों की संख्या 20 हज़ार के पार जाती हुई ही मिलेगी।

भारत में जातिवाद का खेल असल मायनो में पिछड़ी जातियों के अंदर ही चल रहा है बशर्ते ब्राह्मण को रोजाना ट्वीटर, फेसबुक पर दलित संगठन द्वारा जलना भुनना पड़े।


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Why Harsh Meena is writing this piece?
Harsh Meena is a student of journalism at the University of Delhi. He reads and writes Dalit politics for exposing the venom spread by the so-called Dalit organizations. Besides, he is known for being vocal about the forceful conversions of the Hindu Dalits. Fun Fact, Dalit organizations hate him for exposing their nexus with Jay Meem!

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  1. Hi, I am research scholar and working on higher education. I want to access this report. Can you please provide your email id and link of this report or content.

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