नई दिल्ली: अंग्रेजो के शासन में बनी चमार रेजिमेंट को एक बार फिर से जीवित करने की बाते की जा रही है। दरअसल आजादी के बाद से ही समय समय पर चमार रेजिमेंट को बनाने की बाते होती रहती थी परन्तु बीते तीन चार सालों में इस मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है। दलित संगठनों के दबाव में आकर वर्ष 2017 में अनुसूचित जाति आयोग ने रक्षा मंत्रालय के सचिव से इस मुद्दे पर जवाब भी माँगा था तो वहीं मनोहर परिकर ने भी इस पर जल्द फैसला लेने की बाते कही थी।
लेकिन आज ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे #चमार_रेजिमेंट_हक़_है_हमारा ने एक बार फिर देश की सेना को जातिवाद में धकेलना का अवसर प्रदान कर दिया है। कल #अहीर_रेजिमेंट_हक़_है_हमारा भी ट्वीटर पर गोते लगा रहा था। दलित संगठन इस रेजिमेंट के बनने पर यह तर्क देते आये है कि जैसे राजपूत रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट है उस प्रकार से चमार रेजिमेंट भी बननी चाहिए। अगर सरकार चमार रेजिमेंट नहीं बना सकती तो अन्य रेजिमेंट को भी सेना से ख़त्म कर देना चाहिए।
दलित राजनीती करने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने भी आज चमार रेजिमेंट बनाने की मांग आगे रखी। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा “जब भी सैनिकों की वीरता एवं रेजिमेंट की बात होगी चमार रेजिमेंट की शौर्यता को कोई नहीं नकार सकता है। चमार रेजिमेंट, अहीर रेजिमेंट, गुर्जर रेजिमेंट.. सभी जातीय रेजिमेंट की बहाली कर सभी को देश सेवा का मौका मिले। या फिर सभी जातीय रेजिमेंट खत्म की जाए।”
जिस प्रकार चमार रेजिमेंट न होने पर अन्य रेजिमेंट को ख़त्म करने की बाते यह दलित नेता करते आये है तो उसी तर्क के हिसाब से तो इन्हे आरक्षण समाप्त करने की बाते भी उठा ही देनी चाहिए।
जब आरक्षण सामान्य वर्ग के लिए नहीं है तो सभी का आरक्षण समाप्त कर देना चाहिए। वहीं बीते दिनों गरीबी के आधार पर मिले 10 प्रतिशत आरक्षण का विरोध भी सबसे पहले यही दलित संगठन करते हुए नजर आ रह थे।
यहाँ तक कि मायावती द्वारा गरीबो के आरक्षण को समर्थन देने पर इन दलित नेताओ ने मायावती तक को आड़े हाथो लेते हुए सवर्णो की कठपुतली तक बता डाला था।
भीमा कोरेगाव जैसे सवेदनशील मुद्दों पर राजनीती कर दंगो को दावत देने वाले इन दलित संगठनों पर सरकार भी कार्यवाई से डरती हुई दिखाई पड़ती है। जहां चमार रेजिमेंट के सुभाष चंद्र बोस का साथ देकर ब्रिटिश हुकूमत के आदेश को ठुकराने की गाथाये है तो वहीं भारत के इतिहास का एक कड़वा सत्य यह भी है कि वर्ष 1818 में महार वर्ग से आने वाले बहुतायत सैनिको ने अंग्रेज़ो के साथ मिलकर पेशवा बाजी राव के मराठा साम्राज्य का अंत कर लुटेरी ब्रिटिश हुकूमत को स्थापित करने में मदद की थी। खैर दलित संगठन इसे अपनी जीत के तौर पर आज भी मनाते आये है।
कब बनी थी चमार रेजिमेंट
चमार रेजिमेंट को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1 मार्च 1943 को स्थापित किया था। अंग्रेजो ने चमार रेजिमेंट की मदद से कोहिमा में जापानी सेना को भारत में घुसने से रोक दिया था जिसके बाद कई चमार रेजिमेंट के अफसरों व सैनिको को अंग्रेज़ो ने कई तमगों से सम्मानित भी किया था। बाद में अंग्रेज़ो ने उन्हें सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित इंडियन नेशनल आर्मी के विरुद्ध भी इस्तेमाल करना चाहा था जिसपर चमार रेजिमेंट के अधिकतर सैनिको ने बगावत कर सुभाष चंद्र बोस का साथ दिया था। जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इसे वर्ष 1946 में बंद कर दिया था।
दिक्कत चमार रेजिमेंट से नहीं सवर्णो से द्वेष व सेलेक्टिव अजेंडे वाली बांटनीति से है
अपने मुताबिक विक्टिम कार्ड खेलना, सवर्णो पर आग उगलकर हर पल शोषणकारी बताना, तिलक तराजू और तलवार उनको मारो जूते चार जैसे अपमानजनक नारो को खुलेआम राजनीती में बोलना इन दलित संगठनों का मानो एजेंडा सा बन गया है। दलित राजनीती के अलावा दूसरा अन्य कार्य यह धर्म परिवर्तन का भी करते है। हिन्दुओ को तोड़ना, अश्लील धार्मिक टिप्पणी करना भी इनका धंधा बन चूका है।
हमने आज छपी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे बामसेफ नेता व संगठन भारतीय मूलनिवासी पत्रकारिता संघ के इंचार्ज प्रोफेसर विलास खरात हाल के यूपी के टीचर घोटाले को लेकर ब्राह्मण समुदाय को निशाना बना रहे है। इन्होने तो पूरे ब्राह्मण समुदाय को ही आतंकवादी, विदेशी, षड्यंत्रकारी बता दिया है। ऐसे नेताओ के खिलाफ आखिर क्यों कार्यवाई नहीं की जाती व इन्ही तबके से आने वाले लोग ही इनके खिलाफ FIR क्यों दर्ज नहीं कराते ?
अगर इन दलित नेताओ के ट्विटर अकाउंट व बयानों पर आप नजर डालेंगे तो लगेगा की इनका साम्राजय आते ही सबसे पहले यह ब्राह्मणो को देश से बाहर उठा फेकेंगे। एक विष का प्याला भगवान शिव ने पिया था और एक इन नेताओ ने।
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Why Harsh Meena is writing this piece?
Harsh Meena is a student of journalism at the University of Delhi. He reads and writes Dalit politics for exposing the venom spread by the so-called Dalit organizations. Besides, he is known for being vocal about the forceful conversions of the Hindu Dalits. Fun Fact, Dalit organizations hate him for exposing their nexus with Jay Meem!