हिन्दू ग्राहकों से ₹3 ख़रब पहुंचा हलाल सर्टिफाइड मार्किट का कारोबार, लेकिन रखते है सिर्फ मुस्लिम वर्कर

हलाल को लेकर सोशल मीडिया पर मच रहे बवाल पर आज हमारे पाठक रोहित राय ने एक लेख लिखा जिसमे उन्होंने पूरी हलाल विधि को समझाने का प्रयास किया है।

क्या है हलाल जिसे लेकर हिन्दू संगठन उठा रहे है आवाज
हलाल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ हराम व निषेध होता है। कुरान के अनुसार इस्लाम में कई ऐसी वस्तुए है जिन्हे हराम बताया गया है जिसमे मदिरा पान, मरे हुए जानवर के गोश्त, सुवर व बिना हलाल किया मीट शामिल है। जिस कारण से ऐसी वस्तुओ जो इस्लाम के मुताबिक बनी हो इसकी पहचान कराने के लिए हलाल सर्टिफिकेट का इजात किया गया था। वहीं हलाल सर्टिफिकेट को शरीया कानून के मुताबिक भी ढाला गया है।

हलाल इंडिया के मुताबिक इस समय भारत में 6 प्रकार के उद्योगों में हलाल सर्टिफिकेट बांटा जा रहा है जिसमे मेडिकल, रेस्टोरेंट, टूरिज्म, खाद्य सामग्री, ट्रेनिंग व वेयरहाउस शामिल है। ऐसे क्षेत्रो में हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त करने के बाद यह सुनुश्चित किया जाता है कि काम करने वाला व्यक्ति मुस्लिम हो। जैसे हलाल मीट में यह तय किया जाता है कि मीट को काटते समय कुरान की आयतें पढ़ी जा रही हो व काटने वाला व्यक्ति मुसलमान हो। ऐसी प्रैक्टिस देश के सविधान के खिलाफ है जो की हर किसी को सामान अवसर की बात करता है। परन्तु हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त क्षेत्रों में ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता है।

हलाल देश की सुरक्षा व अर्थव्यवस्था पर है हमला

हलाल सर्टिफिकेट एक तरह से सरकारी तंत्र को फेल करने का कार्य करता है। हलाल पूर्ण रूप से धार्मिक गतिविधियों को ट्रेड में बढ़ावा देती है। वहीं देश में क्या बिकेगा क्या नहीं यह भी हलाल इंडिया ही तय करता है। ऐसे में देश में सरकारी तंत्र को ठेंगा दिखाते हुए हलाल इंडस्ट्री का अपना ही अलग देश चल रहा है। इससे एक धर्म विशेष का पूरी अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा या यु कहे यह देश की अर्थव्यवस्था के पैरेलल अपनी एक अन्य अर्थव्यवस्था चलती है जिसका न ही कोई ऑडिट होता है न ही कोई रिकॉर्ड। ऐसे में कई बार ऐसी रिपोर्ट भी देखने पढ़ने को मिल जाती है कि हलाल इंडस्ट्री का पैसा आतंकी गतिविधियों में उपयोग किया जा रहा है।

क्या यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सही है? 
हलाल मोहर मांसाहारी को छोड़कर किसी अन्य वस्तु के संदर्भ में उपयोग किया जाना या उसको भारत में थोपना यह 2013 से शुरू हुआ था। किसी धार्मिक संस्था को मजहब के नाम पर कारोबार के लिए परमिट बांटने का अधिकार किसने दिया यह प्रश्न का जवाब ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा है वहीं क्या ऐसा अधिकार किसी धर्म विशेष को दिया जाना चाहिए यह प्रश्न भी भारत के सविधान को चुनौती देने जैसा ही है। ज्ञात होकि केरल के पश्चिमी कोच्चि में स्थित एक रियल स्टेट कंपनी ने ऐसे ही हलाल सर्टिफाइड अपार्टमेंट्स बनाए हैं जिसमें दावा किया गया है कि ये शरियत से अप्रूव है। क्या यह धार्मिक भेदभाव पैदा करने की चाल नहीं ?

भारत में ऐसी कई संस्थाएं हैं जोकि हलाल सर्टिफिकेशन दे रही हैं या सरल शब्दों में कहे कि हलाल का सीधा-सीधा कारोबार उनके हाथ में है। जबकि कई वर्षो से सरकार से गुजारिश की जा रही है कि यह कारोबार सरकार अपने हाथ में ले। वहीं जो संस्थाएं इस हलाल कारोबार को चला रही है उनमे जमीयत उलेमा ए हिंद व मीयत उलेमा ए महाराष्ट्रा हलाल इंडिया हैं।

इकनोमिक मोनोपोली क्रिएट करने की कोशिश की जा रही है

आपको बता दें कि ग्लोबल हलाल प्रोडक्ट का कारोबार 4.2 बिलियन डॉलर्स के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चूका है। जिसमें भारत भी बढ़-चढ़कर हिस्सेदार है लेकिन सवाल यह है कि इसका कंट्रोल सरकारी संस्थाओं के हाथ में होना चाहिए ना कि प्राइवेट संस्थाओं के हाथ में जो कि इस कारोबार को कंट्रोल करेंगी। आपको बता दें कि भारत में जितने भी होटल है उसमें साजिश के तहत जो भी मांसाहारी भोजन है उसमें तैयार होने वाला मांस उसका मसाला वह सभी हलाल सर्टिफाइड होता है और यह ग्राहकों को बिना उनकी जानकारी के परोसा जा रहा है।

मांसाहारी खाने के अलावा शाकाहारी चीज, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर पाउडर व क्रीम तेल तक अलग अलग तरह के पदार्थ हलाल सर्टिफाइड हो रहे हैं। क्योंकि यह सिर्फ एक धार्मिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने के लिए है। 3 ख़रब रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी इस धार्मिक अर्थव्यवस्था को न आज कोई पूछने वाला है और न कोई हिसाब लेने वाला है।

बिना बताये परोसे जा रहे हलाल सर्टिफाइड आटे, दाल व खाने से मिलने वाले पैसो का प्रयोग धार्मिक गतिविधियों के लिए होता है।
तो ऐसे में बड़े बड़े रेस्टोरेंट्स में जब ग्राहक को बिना बताए वह हलाल सर्टिफाइड कर परोसा जाता है तो इससे मिलने वाले लाभ को धार्मिक प्रचार प्रसार के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। कई रिपोर्ट के मुताबिक इसका इस्तेमाल अधिकतर हिंदुत्व विरोध में किया जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें  कि हलाल सर्टिफिकेट जिन कंपनियों के उत्पादों को दिया जाता है उन कंपनियों में काम करने वाले जो भी कर्मचारी होते हैं वह मुसलमान होते हैं। हलाल सर्टिफिकेशन प्रदान करने वाली कंपनी के कर्मचारी भी मुसलमान होते हैं प्रोडक्ट्स की जांच करने वाले भी मुसलमान होते हैं तो इसका सीधा-सीधा अनुमान इससे लगाया जा सकता है की हलाल प्रोडक्ट्स से होने वाली कमाई का फायदा भी इन्हीं लोगों को मिलता है।  ज्ञात होकि जो भी हिंदू हैं या गैर इस्लामिक चाहे वह मजदूर हो, अधिकारी हो या किसी भी अन्य वर्ग में काम करने वाले लोग है वह इन कंपनियों से नहीं जुड़ सकते है। ऐसे में बड़ी गैर इस्लामिक आबादी को बिना बताये हालाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स बेचना किसी अपराध से कम नहीं है। ऐसे में इसका पैसा उनके धर्म के प्रचार प्रसार में उपयोग करना भी पीठ पर खंजर घोपने जैसा ही है।

सरकार को चाहिए कि तत्काल हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स पर रोक लगाए व लोगो को इसके बारे में जानकारी प्रदान करें।


About the Author: Rohit comes from Azamgarh and has a knack over Halal and Islamic studies. Rohit works in extra marks education India Private Limited Noida (an Edutech Company) as a subject matter expert and team mentor. Besides, he adores exposing the religious trappings who works against the national interest of our country.

The article reflects the author’s opinion and not necessarily the views of Falana Dikhana.


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