नई दिल्ली: एक इंटरव्यू में भीम आर्मी प्रमुख और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने जीवन के निजी अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि अगर देश की सामाजिक व्यवस्था में जाति आधारित भेदभाव नहीं होता, तो आज वे एक कामयाब क्रिकेटर होते और शायद इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का हिस्सा भी होते। उन्होंने बताया कि प्रतिभा होते हुए भी उन्हें वह मंच नहीं मिला जिसकी जरूरत थी। इसी तरह उनके पिता, जो एक स्कूल शिक्षक थे, उन्हें भी जातिगत ताने सुनने पड़ते थे। इस इंटरव्यू में चंद्रशेखर ने अपने बचपन, परिवार, संघर्ष, सपनों और समाज के भेदभावपूर्ण रवैये पर खुलकर बात की।
क्रिकेट खेलने का सपना टूटा, आईपीएल में नहीं मिल सका मौका
चंद्रशेखर आज़ाद ने बताया कि बचपन में उनका सपना क्रिकेटर बनने का था। उन्होंने कहा, “अगर मुझे उस वक्त मंच मिलता, आईपीएल जैसा टूर्नामेंट समय पर आता और सिस्टम में भेदभाव नहीं होता, तो मैं आज एक अच्छा क्रिकेटर होता। शायद उम्र के हिसाब से अब रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहा होता। लेकिन गांव की प्रतिभा गांव में ही रह जाती है। मुझे खेलने का सही मंच नहीं मिला, इसीलिए वो सपना अधूरा रह गया।”
आरक्षण ने दिलाई पिता को नौकरी, बेटे को संसद का मंच
उन्होंने इस दौरान आरक्षण की महत्ता पर भी बात की। चंद्रशेखर ने कहा, “अगर देश में आरक्षण न होता, तो मेरे पिताजी कभी स्कूल में शिक्षक नहीं बन पाते और शायद मैं भी संसद का सदस्य नहीं बन पाता। महान पुरुषों ने जो संघर्ष किया, उससे हमें अवसर मिले और जिम्मेदारी बनती है कि हम उनके अधूरे सपनों को पूरा करें।”
जातिगत तानों से भरा बचपन, स्कूल में झेलना पड़ा भेदभाव
चंद्रशेखर ने बताया कि उनके पिता एक सरकारी शिक्षक होने के बावजूद जब स्कूल में जाति के कारण ताने सुनते थे, तो वह उनके दिल को चुभता था। उन्होंने कहा, “लोग कहते थे – गुरुजी, आज तो छुट्टी मना लो, लेकिन पिताजी कहते – अगर चमार काम नहीं करेगा, तो घर कैसे चलेगा? छह बच्चों की जिम्मेदारी थी, इसलिए काम जरूरी था।”
उन्होंने बताया कि स्कूल में भी उन्हें ताने सुनने पड़ते थे – “तुम पढ़ने नहीं, वजीफा और अनाज लेने आते हो।” जबकि सच्चाई यह थी कि सरकारी कर्मचारी होने के कारण उन्हें न स्कॉलरशिप मिलती थी, न अनाज, न वर्दी।
जेल, लाठियाँ और गोलियाँ – सब समाज के लिए झेली
अपने संघर्षों का ज़िक्र करते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि उन पर जितने भी मुकदमे हुए, वह सब समाज के हित में थे। उन्होंने कहा, “मैंने तिहाड़ जेल दो बार देखी। जो मुकदमे लगे, उनमें एक भी मेरा व्यक्तिगत नहीं था। मैंने जो लाठियां खाईं, जो गोलियाँ खाईं – वह सब समाज की लड़ाई के लिए थीं। मैं संपत्ति की राजनीति नहीं करता, इसलिए अपने जख्म छुपाकर रखता हूं।”