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“12 डिग्री तक बढ़ सकता है अमेरिका का औसत तापमान” – रिपोर्ट

यूएस(वाशिंगटन डीसी) : विश्व भर में बढ़ रही असाधारण प्राकृत आपदाओं व पृथ्वी के बढ़ते तापमान से वैज्ञानिक पहले भी कई बार अपनी चिंता जता चुके है। वहीं ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में अव्वल अमेरिका का निराशा जनक रवैया भी कई देशो को परेशान करता आया है ।

हाल ही में ट्रम्प सरकार द्वारा पेरिस क्लाइमेट चेंज समझौते से अमेरिका के पीछे हाथ खींच लेने से कई टापू देश सबसे अधिक चिंतित है उनका मानना है कि अगर विश्व के औसत तापमान में 1.5 डिग्री कि बढ़त भी आती है तो उनका अस्तित्व ही नहीं बचेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति के चिंतित करने वाले रवैये के बीच ही USA कि सरकार ने “ the 4th National Climate Assessment” कि रिपोर्ट प्रकाशित कि है, रिपोर्ट में क्लाइमेट चेंज से अमेरिका पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कि गयी है जो बेहद चिंताजनक है।



रिपोर्ट के आने के बाद अमेरिकी मीडिया में माथा पच्ची का दौर शुरू हो गया है, CNN के मुताबिक इस सदी के अंत तक अमेरिका को अपनी कुल जीडीपी का 10 प्रतिशत तक का नुक्सान उठाना पड़ सकता है जो एक बहुत बड़ी आर्थिक क्षति होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि “जलवायु परिवर्तन से भविष्य के जोखिम, आज किए गए निर्णयों पर निर्भर करते हैं”

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चौथी नेशनल क्लाइमेट असेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में बेमौसम ऋतुएँ, असामान्य प्राकृत घटनाये, तूफान व सुनामी कि घटनाओ में और इजाफा होने वाला है जिससे अमेरिकी लोगो के जीवन व देश कि अर्थव्यवस्था दोनों को बड़ी क्षति झेलनी पड़ सकती है।
साथ ही रिपोर्ट में इस बात का खुलासा भी करा गया है कि अभी तक कुल 400 बिलियन डॉलर का नुकसान अमेरिका वर्ष 2015 तक उठा चूका है।


आगे रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए 90 प्रतिशत जिम्मेदार मानव सभ्यता है, वहीं साथ ही यह भी उजागर किया गया है कि इस सदी के अंत तक अमेरिका 3 से 12 डिग्री तक गर्म हो जायेगा जो एक भयावह स्थिति को आमंत्रण देने के लिए काफी है ।

क्या कहते है ट्रम्प
अक्टूबर में फॉक्स न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में ट्रम्प साहब ने कहा था कि “मुझे नहीं लगता कि धरती के बढ़ते तापमान के पीछे इंसान का कोई हाथ है”। जिसके बाद अमेरिकी मीडिया में ट्रम्प कि खिल्लिया उड़नी शुरू हो गयी थी।

Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अगर क्लाइमेट चेंज को सच में रोकना है तो विश्व को एकजुट होकर साथ आना होगा और काफी महँगी कीमत अदा करनी होगी। IPCC के मुताबिक 2030 तक CO2 उत्सर्जन को 45 फीसदी तक कम करना होगा वहीं कोयले के प्रयोग को शून्य करना होगा तब कही जाकर ग्लोबल क्लाइमेट चेंज में कुछ सुधार कि गुंजाइस पैदा हो सकती है।

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