अंत में हाईकोर्ट नें मराठा आरक्षण को बताया वैध, जाट-गुर्जर-पाटीदार आरक्षण के भी खुले रास्ते

मुंबई : हाईकोर्ट नें 50% सीलिंग लिमिट तोड़ने के बावजूद मराठा आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सही करार किया है और अब आरक्षण 75% तक पहुंचा |

आज बात करते हैं मराठा आरक्षण पर, आसान शब्दों में समझते हैं तो 30 नवंबर को महाराष्ट्र की देवेंद्र फडनवीस वाली भाजपा सरकार नें राज्य की विधानसभा में 16% मराठा आरक्षण  का प्रस्ताव पास कराया था | जाहिर है कि ये 1992 वाले इंदिरा साहिनी केस को लांघ रहा था जिसमें किसी भी कारण से 50% से अधिक जातिगत आरक्षण न देने की बात की गई थी | इसीलिए मराठा आरक्षण का मामला हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट दोनों में कई बार पहुंचा | उधर राज्य में मेडिकल छात्रों नें इसके खिलाफ मोर्चा खोला था उनकी मांग थी कि EWS व मराठा आरक्षण से मेरिट का हनन होगा अच्छे नम्बर आने के बावजूद सरकारी कालेजों में एडमिशन नहीं मिल पाएगा |

आखिरकार मराठा आरक्षण पर गुरुवार को बाम्बे हाईकोर्ट वाली जस्टिस रंजीत मोरे व भारती डांगरे की बेंच नें एक साथ सभी याचिकाओं की सुनवाई की जिसमें एक बड़ा फ़ैसला निकलकर आया और इसमें कुछ बिंदु महत्वपूर्ण भी हैं |

हाईकोर्ट नें 16% आरक्षण को अधिक बताते हुए इसकी सीमा को कम क्र दिया और कहा कि शिक्षा संस्थानों में ये आरक्षण 12% और नौकरियों में 13% |

यानी कि इस तरह से मराठा आरक्षण संविधानिक तौर पर हाईकोर्ट द्वारा सही माना गया और ये 52% से बढ़कर 75% हो गया | इसके पहले तमिलनाडु में सबसे अधिक 69% आरक्षण था और इसके आलावा 4 राज्यों में आरक्षण 50% की सीमा पार कर चुका था लेकिन तमिलनाडु ही पहला राज्य था जिसने इंदिरा साहिनी केस के बाद सीमा को पार किया अन्य राज्यों में सीमा 1992 के पहले पार करी गई थी |

तो बाम्बे हाईकोर्ट के इस फ़ैसले के बाद जहाँ मराठा समुदाय में ख़ुशी की लहर झूम रही है वहीं देश के आगे आरक्षण को लेकर एक बार फिर से बड़ा प्रश्नचिंह खड़ा हो गया है | क्योंकि इस आरक्षण को मराठा नेताओं के अलावा पहले से अन्य समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करने वाले नेताओं नें इस निर्णय के बाद अपने अपने आरक्षणों को लेकर कमर कसनी शुरू कर दी है |

हम बात कर रहे हैं गुजरात के पाटीदार, राजस्थान गुर्जर व हरियाणा के जाट आरक्षण की, जिनके आरक्षण पर राज्य की कोर्ट समेत सुप्रीमकोर्ट नें उनका आरक्षण कई बार 50% सीमा के चलते रोका हुआ था | अब उनका मानना है कि यदि राज्य को जरूरत हुए तो ये सीमा पार की जा सकती है |

तो इस निर्णय को हम समेटते हुए निष्कर्ष निकालें तो हाईकोर्ट के अनुसार आरक्षण की सीमा तय करने वाली अंतिम बाडी राज्य ही है जोकि परिणाम निर्धारित करने योग्य डाटा के होने से 50% आरक्षण की सीमा को तोड़ कर आरक्षण बढ़ा सकते हैं |

हालाँकि बाम्बे हाईकोर्ट के इस फ़ैसले को भी यूथ फ़ॉर इक्विलिटी समेत कई पार्टियाँ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं |

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