बड़प्पन: जेटली नौकरों की तरह अपने बच्चों को जेब ख़र्च भी चेक में देते थे !

नईदिल्ली : अरुण जेटली नौकरों को ही नहीं बल्कि अपने बच्चों को जेब ख़र्च भी चेक काटकर देते थे ।
आज देश के पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली जी पंचतत्व में विलीन हो गए और अपने पीछे छोड़ गए कई अनगिनत यादें ।
जेटली जी में कई गुण थे, कई अच्छाइयों के धनी थे मगर सार्वजनिक जीवन में किसी को भनक तक लगने नहीं दी ।
ऐसी ही अरुण जेटली जी की कुछ अनुसुनी कहानियों को रामनाथ गोयनका विजेता, इंडिया टूडे हिंदी के पूर्व असिस्टेंट एडिटर व वर्तमान में दैनिक भास्कर के डिप्टी एडिटर श्री संतोष कुमार बताते हैं कि जेटली जी अपने निजी स्टॉफ और उनके परिजनों की हाउसिंग, एजुकेशन और हैल्थ की समूची देखरेख अपने घर के सदस्य जैसा करते थे ।
दान वही जो गुप्तदान मदद वही जो दूसरे हाथ को भी मालूम न पड़े। देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करते हुए सामाजिक जीवन स्तर में बदलाव की संवैधानिक जिम्मेदारी संभाल चुके पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के बारे में ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। दैनिक भास्कर की मंडे पाजिटिव की तीसरी सालगिरह पर मैंने सकारात्मक खबरों पर मंथन किया तो जेटली जी की निजी स्टाफ जिन्हें पत्रकार के नाते खुद लंबे अरसे से देखता रहा, चाहे वे सत्ता में रहे या विपक्ष में, साए की तरह जेटली के साथ दिखते थे। मालूम चला कि जेटली अपने स्टाफ को परिवार का ही हिस्सा मानकर देखरेख करते हैं। यही बात जब उनसे पूछी, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कुछ भी कहने से परहेज किया, लेकिन कुछ अपनी जानकारियां उनसे साझा की तो उन्होंने इतना ही कहा था, “मैं इसे सार्वजनिक नहीं करता और ना ही बोलता हूं। लेकिन हां, इतना जरुर है कि उनकी और परिवार की हाउसिंग, एजुकेशन और हैल्थ की देखरेख वेतन से अलग मैं करता हूं। जैसे और जिन स्कूलों में मैंने अपने बच्चों को पढाया उन्हीं स्कूलों में स्टाफ के बच्चे भी पढ़े और विदेश में पढ़ाई का खर्च भी वहन करता हूं।”
दरअसल अपने निजी स्टॉफ से जेटली का नाता नियोक्ता और कर्मचारी का नहीं, बल्कि एक विस्तारित परिवार जैसा था।
जेटली अपने स्टॉफ की ही नहीं, उनके परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी अपने परिवार की तरह संभालते थे तो उनके साथ काम करने वाले कर्मचारी भी महज कर्मचारी नहीं, परिवार के सदस्य की तरह जेटली की देखभाल करते थे। जेटली को समय पर दवाई देनी हो या खाना में डाइट और जायका का ख्याल भी बखूबी रखते थे। जेटली ने एक अघोषित नीति कर्मचारियों के लिए बना रखी थी, जिसमें यह निर्धारित था कि जेटली के अपने बच्चे जिस स्कूल-कॉलेज में पढ़े हैं वहां उनके कर्मचारियों के बच्चे भी पढेंगे। अगर कर्मचारियों के बच्चे प्रतिभावान निकलते हैं और विदेशों में पढ़ने को इच्छुक हैं तो विदेशों में जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं वहां उनके कर्मचारियों के बच्चे भी पढ़ते हैं।
स्टॉफ के बच्चों को भी कमजोर परिवार से होने का अहसास नहीं होने देते थे ।
जेटली परिवार के लिए खान-पान की पूरी व्यवस्था देखने वाले जोगेंद्र हो या ड्राइवर जगन या फिर सहायक पद्म या संसद और मंत्रालय में साए की तरह साथ रहने वाले गोपाल भंडारी, सबको मिलाकर करीब 10 स्टॉफ उनसे दो-तीन दशकों से जुड़े हैं। समूचे स्टॉफ में सुरेंद्र सबसे अहम चेहरा है जो जेटली के कोर्ट में प्रैक्टिस के समय से साथ में हैं और घर के ऑफिस से लेकर बांकी सारे काम की निगरानी इन्हीं के जिम्मे है। इस वक्त भी तीन सहायकों के बच्चे विदेश में रहकर पढ़ रहे हैं, जिनका खर्च खुद जेटली वहन करते रहे हैं। इसमें खान-पान की व्यवस्था में लगे जोगेंद्र की दूसरी बेटी भी दो साल पहले तक लंदन में पढ़ाई कर रही थी। जबकि गोपाल भंडारी के दो बच्चों में से एक डॉक्टर तो दूसरा इंजिनियर हो चुका है। इसके अलावा भी जिन कर्मचारियों के बच्चे एमबीए या कोई अन्य प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते थे, उसमें जेटली फीस से लेकर नौकरी दिलाने तक का मुकम्मल प्रबंध करते थे।
अभी भी उनके साथ काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चे चाणक्यपुरी स्थित उसी कार्मेल कान्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं जहां जेटली के बच्चे पढ़े हैं। इस स्कूल में प्रिंसिपल से बात करके उसी तरह अभिभावक की भूमिका निभाते हैं जैसे खुद के बच्चे के लिए करते थे। उनके एक सहयोगी ने तब मुझे बताया था, “जैसे मां-बाप अपने बच्चों के लिए करते हैं, जेटली और उनकी पत्नी भी उसी तरह से हर क्लास में बेहतर नतीजों पर प्रोत्साहन देने का काम करते हैं ताकि कर्मचारियों के बच्चों को शिक्षा के दौरान कभी कमजोर परिवार से होने का अहसास नहीं हो।”
कभी कोई नौकरी छोड़कर नहीं गया
जेटली के बारे में उनके सहयोगी रहे और दिल्ली में मौजूदा विधायक ओम प्रकाश शर्मा कहते हैं, “मैं 1972 से जेटली जी के साथ जुड़ा हूं और शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो उनके यहां से नौकरी छोड़कर गया हो। इसलिए आज भी उनके स्टॉफ 30-35 साल पुराने लोग पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहे हैं।” जेटली के एक करीबी बताते हैं, “कर्मचारियों और उनके परिवार के मकान, स्वास्थ्य और शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी जेटली उसी तरह वहन करते हैं जैसे उनके परिवार का हिस्सा हो।” इस काम में सिर्फ जेटली ही नहीं, उनकी पत्नी संगीता जेटली भी अहम भूमिका निभाती रही हैं। जिन कर्मचारियों के बच्चे स्कूल-कॉलेज में अच्छे अंक लाते हैं तो उन्हें ब्रांडेड कपड़े, महंगे जूते आदि गिफ्ट करके प्रोत्साहन का काम संगीता जेटली ही करती हैं।
खर्च का प्रबंधन कर्मचारियों के लिए अलग ट्रस्ट बनाकर करते थे जेटली, अन्य खर्चे मूल वेतन से अलग करते थे, सामान्य से दोगुना वेतन देते थे ।
अरुण जेटली के बारे में शायद ही किसी को मालूम होगा कि वे वित्तीय प्रबंधन में इस तरह सावधानी बरतते थे कि कोई ऊंगली न उठा सके। जेटली अपने मातहतों को वेतन या कोई मदद के लिए सिर्फ चेक का इस्तेमाल तो करते ही थे, अपने बच्चों को जेब खर्च भी चेक के जरिए ही दिया करते थे। अब उनके दोनों बच्चे रोहन और सोनाली पेशे से वकील हैं। लेकिन अपने मातहतों के लिए खर्च का प्रबंधन का काम जेटली एक ट्रस्ट के माध्यम से करते रहे हैं। उन्होंने अपने वकालत की प्रैक्टिस के समय ही कर्मचारियों के लिए अलग वेलफेयर फंड बना लिया था जिसका इस्तेमाल वे अपने मातहतों और उनके परिजनों के आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा और शादी-ब्याह में खर्च की पूरी जिम्मेदारी मूल वेतन के अलावा वहन करते थे। उनके साथ काम करने वाले कर्मचारी इतने लंबे समय से क्यों टिके हैं? इस बारे में उनके साथ काम कर चुके एक सहायक बताते हैं, “सारी सुविधाओं के अलावा कर्मचारियों को जेटली सामान्य से दोगुना वेतन देते थे।”
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