योगी सरकार की शिक्षक भर्ती में 60% कटऑफ रखने से 1,133 ST सीटें रह गई खाली, नहीं निकाल पाए कटऑफ

लखनऊ: उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन बोर्ड (UPBEB) द्वारा 69000 पदों पर वर्ष 2019 में निकाली गई सहायक अध्यापक भर्ती में बहुत ही चौकाने वाले आंकड़े सामने आये है।

कुल 69000 पदों की भारी भरकम भर्ती में इस बार योगी सरकार ने शिक्षकों की गुणवत्ता सुधारने के मकसद से सभी श्रेणियों में कट ऑफ मार्क्स में भारी इजाफा किया था। योगी सरकार ने जनरल केटेगरी के लिए कट ऑफ 65 प्रतिशत अंको पर तय की थी तो वही ओबीसी, एससी व एसटी वर्ग के लिए 60 % कटऑफ का प्रावधान रखा था।

योगी सरकार के इस फैसले को इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी पर जिसे कोर्ट ने रद्द करते हुए सरकार के इस फैसले को शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए एक अच्छा कदम बताया था।

आये दिन देश के बड़े राज्यों में शिक्षकों की गुणवत्ता एक सवेंदनशील मुद्दा बनी हुई थी जिस कारण से योगी सरकार को एक तय कटऑफ लानी पड़ी जिसपर दलितों संगठनों का रोष भी सामने आया।

वहीं एक जून को आयी मेरिट लिस्ट ने सभी को चौका के रख दिया। 69000 पदों में से सिर्फ 67,867 कैंडिडेट्स ही मेरिट लिस्ट में अपनी जगह बनाये। खैर ऐसा नहीं था कि अन्य लोगो के 65% से अधिक अंक नहीं थे मगर अनुसूचित जनजाति के लिए तय आरक्षण पर लड़ने वाले परीक्षार्थी 60 % की कट ऑफ ही पार न कर सके।

आपको बता दे कि पहले एससी व एसटी की कटऑफ मात्र 40 प्रतिशत थी जिससे शिक्षा की गुणवत्ता निम्न स्तर की बनी रहती थी। ऐसे में आई नई व्यवस्था के बाद एसटी की बची 1,133 सीट पर कोई भी परीक्षार्थी 60 प्रतिशत की कटऑफ ही पार न कर सका।

खाली पड़ी इन 1,133 सीटों पर दलित नेताओं ने अपना विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया जिसमे उदित राज ने तो ट्वीट में अफवाह फ़ैलाने तक का प्रयास किया। उन्होंने सीट न भर पाने का असल कारण न बताते हुए इसे आरक्षण पर आघात व राम राज्य में दलितों की ख़राब हालत से जोड़ डाला।

यह इसलिए भी चिंतित करने वाला आंकड़ा है क्यूंकि आरक्षण के चलते शुरू से ही आरक्षित वर्ग के बच्चे कम नंबरो पर दाखिला व अन्य सुविधाओं का लाभ उठाने लग जाते है जिस कारण से भी वह एक तय क्वालिटी कम्पटीशन में पिछड़ जाते है।

संविधान के जानकारों के अनुसार आरक्षण का अर्थ यह कतई नहीं होना चाहिए कि एक वर्ग को उठाने के नाम पर हम गुणवत्ता से समझौता कर ले। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में तो कम अंको पर अध्यापको की भर्ती अगर अन्य राज्यों में भी चलती रहेगी तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य अधर में लटकना तय है या यूँ कहे तब इस साइकिल को तोडना सभी सरकारों के लिए नामुमकिन सा हो जायेगा।


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Why Harsh Meena is writing this piece?
Harsh Meena is a student of journalism at the University of Delhi. He reads and writes Dalit politics for exposing the venom spread by the so-called Dalit organizations. Besides, he is known for being vocal about the forceful conversions of the Hindu Dalits. Fun Fact, Dalit organizations hate him for exposing their nexus with Jay Meem!

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