बिलासपुर: उच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले की गई प्रारंभिक जांच को अवैध बताया है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत कोई प्रारंभिक जांच नहीं की जा सकती है, और एक मामले में FIR पूर्व पुलिस द्वारा की गई प्रारंभिक जांच को अवैध और गलत बताया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि एससी एसटी एक्ट के अधिनियमों के मुताबिक बिना जाँच के ही पुलिस को FIR दर्ज करनी ही होगी।
जानिए क्या है मामला
दरअसल अदालत कोरबा जिले के करूमौहा गाँव के दलित सरपंच चंद्रशेखर मंझवार के एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जहां सरपंच ने सीईओ जनपद पंचायत गोपाल प्रसाद मिश्रा के खिलाफ जातिसूचक शब्द कहने के लेकर शिकायत दर्ज की थी।
चंद्रशेखर मंझवार ने 9 मार्च 2021 को एससी-एसटी एक्ट थाना कोरबा में गोपाल मिश्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। दर्ज शिकायत में चंद्रशेखर ने बताया था कि गोपाल मिश्रा द्वारा उन्हें जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए अपमानित किया गया है। सरपंच की और से सम्बंधित अफसर के खिलाफ एससी एसटी एक्ट में अभियोग पंजीकृत किये जाने की मांग की गई थी। जिसपर प्राथमिक जाँच में आरोपों को झूठा पाए जाने पर FIR दर्ज करने से इंकार कर दिया गया था।
जांच में हुआ खुलासा
पुलिस द्वारा मामले में गोपाल मिश्रा के खिलाफ दर्ज मामले में जांच करते हुए पाया कि गोपाल मिश्रा पर लगे सभी आरोप झूठे और निराधार थे।
पुलिस द्वारा अदालत के समक्ष बताया गया कि सरपंच पर भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोप लगे थे। जिसकी जांच सीईओ गोपाल मिश्रा कर रहे थे, जांच के नतीजों से नाखुश मंझवार ने सीईओ मिश्रा के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई थी। मामले में कोई भी स्वंत्रत गवाह भी नहीं था।
पुलिस की जांच में अदालत ने महसूस किया कि प्राथमिकी दर्ज करने के लिए (एससी-एसटी अधिनियम में) किसी प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस द्वारा की गई प्रारंभिक जांच की शुरुआत अवैध और गलत है, जिसे रद्द किया जा सकता है।
एससी एसटी एक्ट के नियमो को देखते हुए जस्टिस नरेंद्र कुमार ने प्राथमिक जाँच को रद्द करते हुए अफसर के खिलाफ FIR दर्ज किये जाने का निर्देश दिया है। जिसके बाद गोपाल मिश्रा के खिलाफ अब एससी एसटी एक्ट के तहत आपराधिक मामला चलाया जायेगा।
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