सन्तकबीरनगर: उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर के हरिहरपुर नगर पंचायत में एक सनसनीखेज मामला संज्ञान में आया है। हरिहरपुर के वार्ड नंबर 4 के निवासी नवयुवक रघुवीर गुप्ता जो कि रेलवे में गेट मैन के पद पर कार्यरत था, ने अपने
युवक की उम्र मात्र 23 वर्ष थी। पुलिस को युवक के जेब से एक सुसाइड नोट प्राप्त हुआ, जिसमें युवक ने हरिहरपुर नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन के साथ साथ पुलिस प्रशासन पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं।
ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रघुवीर गुप्ता के साथ-साथ 80 से अधिक ग्रामीण परिवारों का एक जमीनी मामला चल रहा था। यह जमीन भूमि हीन ग्रामीणों को 1976 और कुछ जमीन 1993 से 1996 के बीच में पट्टा की गई थी। जिसे पिछले वर्ष पूर्व चेयरमैन के इशारे पर दो से तीन महीने के अंदर ही जंगल की जमीन घोषित कर पट्टा निरस्त कर दिया गया।
जनवरी 2021 में रघुवीर गुप्ता की अगुवाई में ग्रामीणों द्वारा जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन किया गया था लेकिन तत्कालीन जिलाधिकारी ने भी ग्रामीणों से मिलने का औचित्य नहीं समझा कुछेक निचले स्तर के अधिकारियों ने मामले को देखने का आश्वासन दिया और ग्रामीणों पर मुकदमा दर्ज कराने की बात कर डरा धमका कर भगा दिया था। बाद में डीएम द्वारा एडीएम के नेतृत्व में एक जांच बैठाई गई थी लेकिन उसका क्या परिणाम हुआ कुछ पता नहीं चला। समस्या तब बढ़ी जब समाधान के बजाय अधिकारियों की टीम जमीन नापने पहुंच गई ऐसे में ग्रामीणों के साथ झड़प हुई।
अगर मामले को प्रथम दृष्ट्या देखें तो कहीं से भी नहीं लगता कि जिला प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन द्वारा पीड़ित 80 परिवारों के पक्ष में कोई कदम उठाया जा रहा था बल्कि यह लोग तहसील से लेकर जिला प्रशासन तक के चक्कर लगा रहे थे और समाधान के बजाय प्रशासन बिना ग्रामीणों को विश्वास में लिए जमीन से कब्जा हटवाने के प्रयास में था।
जिला प्रशासन की असंवेदनशीलता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उसे इन 80 परिवारों की कोई चिंता नहीं थी कि अगर इनकी भूमि छीन गई तो इनका गुजारा कैसे होगा। जहाँ प्रशासन को पीड़ित ग्रामीणों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी थी वहां उल्टे प्रशासन द्वारा ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल तक भेज दिया गया। रघुवीर गुप्ता को भी 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इसके अलावा सुसाइड नोट में रघुवीर गुप्ता ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि जब धनतेरस के दिन वह ड्यूटी पर था उस दिन भी उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया गया।
स्थानीय लोगों के अनुसार यह 300 बीघे जमीन नगर पंचायत में होने के कारण काफी क़ीमती है। ऐसे में पुलिस से लेकर तहसील प्रशासन और जिला प्रशासन सभी कहीं न कहीं इस अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार में लिप्त थे। प्रशासन की लापरवाही से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितना बड़ा खेल चल रहा है।
आज जिस पूर्व चेयरमैन को गिरफ्तार कर पुलिस प्रशासन अपनी पीठ थपथपाकर वाहवाही लूटने में लगा हुआ है वही पुलिस प्रशासन पिछले महीने उसी पूर्व चेयरमैन के इशारे पर ग्रामीणों को मानसिक रूप डराने धमकाने व फर्जी एफआईआर दर्ज करने में व्यस्त था। अब जबकि एक नवयुवक पर फर्जी एफआईआर और मुकदमा दर्ज कर उसको आत्महत्या के लिए विवश किया जा चुका है ऐसे में पुलिस द्वारा केवल पूर्व चेयरमैन को गिरफ्तार कर अन्य अधिकारियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है जबकि स्पष्ट रुप से जितना बड़ा दोषी पूर्व चेयरमैन है उतने ही अपराधी पूर्व चेयरमैन के इशारे पर फर्जी तरीके से काम करने वाले अधिकारी भी हैं। ग्रामीणों में सरकार व स्थानीय अधिकारियों के विरुद्ध जबर्दस्त आक्रोश है।
ग्रामीणों ने तत्कालीन थाना प्रभारी की भी संलिप्तता से इंकार नहीं किया है और साथ ही रघुवीर गुप्ता ने भी अपने सुसाइड नोट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जब वह ड्यूटी पर था उसी दौरान उसपर एफआईआर दर्ज कर लिया गया। इस प्रकरण की जांच के लिए कोई सुगबुगाहट नहीं है।
स्थानीय लोगों के अनुसार वर्तमान चेयरमैन केवल मुखौटा है पूर्व चेयरमैन के इशारे पर ही सारे काम होते हैं यहाँ तक अधिकारी सीधे पूर्व चेयरमैन के संपर्क में ही रहते हैं और पूर्व चेयरमैन की पहुंच लखनऊ सचिवालय तक है।