ब्राह्मण परिवार की दशा: रहने को कच्चा घर भी नसीब नहीं, दो वक़्त की रोटी के लिए 65 वर्षीय महिला मजदूरी को मजबूर

सुल्तानपुर: कहा जाता है कि गरीबी किसी की जाति, धर्म व मजहब पूछ कर नहीं आती। यह कहावत उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के कुड़वार थाना के अंतर्गत आने वाले कोटा ग्रामसभा निवासी अशोक तिवारी पर बिल्कुल सटीक बैठती है।

अशोक तिवारी के परिवार में माता पिता एवं दो बच्चों समेत 6 लोग हैं। इन 6 लोगों का पेट पालने के लिए अशोक सुबह से शाम तक संघर्ष करते हैं। रहने के लिए कच्चा मकान तक भी न होने के कारण 6 लोगों का परिवार एक छप्पर के नीचे सोने को मजबूर हैं।

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत नहीं मिला आवास

6 लोगों के साथ एक छप्पर के नीचे साल के तीनों महीने बिताने वाले अशोक से हमने जब पीएम आवास योजना के बारे में पूछा तो उनका जबाव था कि गरीब की कोई सुनवाई नहीं है। दरअसल अशोक तिवारी पीएम आवास योजना के लिए पात्र तो है किंतु जाति से ब्राह्मण होने के कारण उनकी पात्रता हर बार कमजोर पड़ जाती है। यही कारण है कि कड़ाके की ठंड हो या चिलचिलाती धूप अशोक का परिवार घास फूंस से बने एक छप्पर के नीचे रहने को मजबूर है।

दबंगों ने हड़प ली जमीन

पढ़े लिखे न होने के कारण कुछ दबंगों ने ठगी कर अशोक के पिता से उनकी पूरी जमीन हड़प ली, जिसके बाद से उनके पास एक भी बीघे जमीन नही बची है। तब से ही अशोक के परिवार का गुजारा सरकार द्वारा मिलने वाले राशन से हो रहा है। उनके परिवार का राशन कार्ड भी गरीबी रेखा के नीचे वाला (लाल कार्ड) नही बना। पूछने पर बताया कि वो पात्र है फिर भी उनका लाल कार्ड नहीं बनाया गया।

गाय पालकर करते हैं गुजारा

खेती के लिए जमीन नही है न ही कोई नौकरी, तो अशोक ने 2 गाय पालकर उन्हें ही अपनी जीविका का सहारा बना लिया। गांव में कभी कभी मजदूरी के लिए भी चले जाते थे किंतु गाय पालने के बाद वो भी बंद कर दिया।

अशोक कहते है कि दिन भर गायों की सेवा करता हूं दूध बेचकर जो कुछ नसीब होता है उसी से परिवार का गुजारा चल रहा है। हालांकि गाय को बांधने के लिए उनके पास कोई गौशाला नहीं है जिसके कारण परिवार के साथ गाय भी खुले में ही रहने को मजबूर है।

दूसरों के घरों में काम करती है मां

अशोक की मां की उम्र लगभग 65 – 70 वर्ष होगी, वो आज भी गांव के लोगों के घर मजदूरी को जाती है। बदले में लोग अनाज या फिर कपड़े जो कुछ भी दे देते हैं उसे ही मेहनताना समझकर रख लेती है। हमने सवाल किया कि आप वृद्ध हो गई है तो माताजी बोली- हमारे लिए कोई योजना नहीं है जिस कारण इस उम्र में भी काम करना जरुरी हो गया है।

खुले में है रसोई, घुस जाते है कुत्ते

शाम करीब 5 बजे मिट्टी के बने हुए चूल्हे पर चावल पक रहा था। कोई दरवाजा या दीवार ना होने के कारण पूरी रसोई सड़क से ही दिख रही थी। हमने पूछा कि दरवाजा क्यों नही लगा तो बताया जब दीवार बनाने के पैसे नहीं है तो दरवाजे कैसे लगाएंगे। खुले में होने के कारण दिन भर कुत्ते रसोई तक आते जाते रहते है और कभी कभी तो बर्तनों को भी जूठा कर देते हैं।

घर में कोई बिजली का बल्ब नहीं लगा है, केरोसिन का तेल खत्म हो गया है इसलिए रात का खाना शाम को जल्दी ही बन रहा था ताकि सब दिन रहते ही उजाले में भोजन कर ले।

बरसात में ढह गई थी मिट्टी की दीवार

अशोक ने बताया कि, उन्होंने घरवालों के साथ मिलकर मिट्टी की एक कच्ची दीवार बनाई थी जो बरसात में ढह गई। अचानक दीवार ढहने से परिवार मरते मरते बचा था। दीवार ढह जाने के बाद अब अशोक दोबारा उसे बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है।

आजादी के 75 वर्ष के बाद भी अशोक तिवारी का परिवार सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाई जा रही प्रमुख योजनाओं से वंचित है। इसका कारण जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा अशोक की अनदेखी और अशोक द्वारा खुद के लिए अपनी आवाज उठा पाने में असमर्थता है। कारण कुछ भी हो शासन प्रशासन द्वारा अशोक जैसे वंचितों को उनका हक बिना किसी भेदभाव के मिलना ही चाहिए।


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