नई दिल्ली: विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि वह 20 दिसंबर से 31 दिसंबर तक संपूर्ण देश में व्यापक रूप से धर्म रक्षा अभियान चलाएगी।
विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार ने आज कहा कि धर्मांतरण की देशव्यापी विभीषिका को देखते हुए राज्य व केंद्र सरकारें अवैध धर्मांतरण के रोकने हेतु कठोर कानून बनाकर जिहादियों व ईसाई मिशनरियों के हिन्दू – द्रोही देशद्रोही कुकर्मों पर लगाम लगाएं।
एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने आज कहा कि भोले – भाले वनवासियों, ग्राम वासियों और पिछड़ी बस्ती के निवासियों को विशेष रूप से लक्ष्य किया जा रहा है। मिशनरी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि जितनी चर्च कोरोना काल में खोली गई उतनी गत 25 वर्षों में नहीं खोली गई।
विहिप कार्याध्यक्ष ने कहा कि इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि संविधान में अनुसूचित जातियों के विकास के लिए कुछ सुविधाओं के प्रावधान किए गए जो मतांतरित होने के बाद स्वाभाविक रूप से समाप्त हो जाते हैं परंतु, अनुसूचित जनजातियों के द्वारा धर्मांतरण करने के बाद उनके विशेषाधिकार पूर्ववत रहते हैं। इस संवैधानिक चूक का फायदा मिशनरी लेते हैं।
उन्होंने कहा कि यह जनजातियों के अपने धर्म के प्रति अटूट विश्वास का ही परिणाम है कि गत ढाई सौ वर्षों से हजारों मिशनरियों के सतत षड्यंत्र व अरबों डॉलर खर्च करने के बावजूद वे केवल 18 % वनवासियों को ही धर्मांतरित कर पाए हैं जबकि अमेरिका, दक्षिण अमेरिकी देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि में इनके षड्यंत्र के परिणाम स्वरुप लगभग शत प्रतिशत बनवासी मतांतरित हो गए या समाप्त हो गए। पिछले दिनों चर्च द्वारा भारत की जनजातियों में विभेद निर्माण करने व अवैध धर्मातरण के नए नए षडयंत्रों की रचना की गई है जिसमें चर्च को धाम / मंदिर कहना, भगवा वस्त्र धारण करना, जीसस को कृष्ण रूप में प्रस्तुत करना आदि धोखाधड़ी वाले काम है।
विहिप ने कहा कि जिन राज्यों में अवैध धर्मांतरण व लव जेहाद को रोकने के लिए सशक्त कानून नहीं है, देश हित व समाज हित को ध्यान रखते हुए वे अविलंब कानून बनाएं। अवैध धर्मांतरण के राष्ट्रव्यापी स्वरूप व आतंकी संगठनों से इनके संबंधों को देखते हुए केंद्र सरकार को इनके षड्यंत्रों पर रोक लगाने के लिए एक सशक्त कानून शीघ्र लाना चाहिए।
संगठन ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों के जिन व्यक्तियों ने मतांतरण किया है वह अपने पूर्वजों की परम्परा, श्रद्धा और पूजा पद्धति से अलग हो जाते है। उनको जनजातियों को मिल रहे लाभों से वंचित करने के लिए भी आवश्यक संविधान संशोधन अतिशीघ्र करना चाहिए।