यादें: सबके गाँव में एक बाबा होते थे जो कहते थे ‘बेटा मेरी भूत से लड़ाई हुई थी…’

फ़ीचर : क्या आपको याद है आपके गाँव में भी कोई बूढ़े बाबा होंगे जो भूत से लड़ाई की कहानी सुनाते थे ?

इस खाओ कमाओ वाली ज़िन्दगी में शायद हमने अपना बचपन नहीं याद रखा, इंटरनेट की जिंदगी में वो बातें भूल गईं जिन्होंने जीना सिखाया था | तो एक बार फिर से हम आपकी घर गाँव वाली उन यादों को तरोताज़ा करने के लिए लाए हैं “हाँ याद आ गया” सीरीज जिसके पहले भाग में गाँव में बूढ़े बाबा-दादा जी के उन कहानियों वबातों को याद करेंगे जो सालों पहले छूट चुकी थीं | तो आइए चलते हैं फिर बचपन की ओर …

एक बात तो तय है कि गाँव में माँ और बहन के हाँथों के खाने या बाग़ बगीचों की शुद्ध-ताजी हवा से ऊब कर आदमी गाँव नहीं छोड़ता है, बल्कि ये सब अच्छी पढ़ाई, अच्छी नौकरी के लिए ही करना पड़ता है | फिर भी कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो हमें गाँव व उसकी ‘सोंधी माटी’ से जनम भर जोड़कर रखती है | आज मुझे भी ऐसी ही एक बात याद आ गई जिसको मैंने सोचा क्यों न आप लोगों को भी याद दिलाया जाए |

थोड़ी देर के लिए शहरों की दौड़ती-भागती, लपकती-झपकती वाली जिंदगी से दूर गाँव की माटी की ओर चलिए तो सबसे पहले गाँव में आपके ज़हन में क्या आता है ? वही हरे-भरे खेत, आम-इमली से लदे झूलते बाग़-बगीचे, माँ और चूल्हे की ताजी रोटी, बूढ़े काका-बाबा, बच्चों का गिल्ली डंडा जैसी कुछ बातें होती हैं जो गाँव की यादों को ताजा कर देती हैं | बात आई है बूढ़े काका की तो मुझे अपने गाँव के काका की वो कहानियाँ हमेशा याद आती हैं और याद करके हँसी भी रोके नहीं रूकती | वैसे हँसी न रुकने का कारण भी ऐसा होता था कि वो काका बचपन में कहानी सुनाए थे कि उनकी एक बार भूत से बहुत भयानक लड़ाई हो गई थी जिस भूत का नाम भर सुनने से हम लोग रात में बाहर जाकर सूसू करना कैंसिल कर देते थे, लेकिन इसके उलट बाबा कहते कि जब उनकी लड़ाई भूत से हो गई थी तो उन्होंने भूत को पटक-पटककर चारो खाने चित्त कर दिया था |

भाई भूत-प्रेत की कहानी सुनाने में बाबा भी एक से बढ़कर एक थे एक बार पड़ोसी गाँव के काका नें ऐसी कहानी सुनाई कि अगर वह सच में वास्तविक होती और परमवीर चक्र मेरे हाथ होता तो मैं उन्ही बाबा को दे देता और कहता, “बाबा जी आपके जैसा वीर महापुरुष इस दुनिया में कोई नहीं” | दरअसल उन्होंने कहानी बताई कि एक बार भूत नें उनसे खाने के लिए चून-तम्बाकू माँग लिया था, मैं भौचक्का, अरे बाबा जी…! आपने कैसे पहचाना कि वो भूत ही था ? बाबा जी इतने आत्मविश्वास के साथ फटाफट जवाब भी दे देते, अरे बेटा वो भूत न एकदम सफेद कुर्ता-पजामा में था, और सबसे बड़ी बात कि उसके पांव उल्टे थे | मैं भी बोला, “वाह बाबा जी ! आपने तो सचमुच कमाल कर दिया” | फिर भी मन इतना आसानी से मानता नहीं तो पूछा-अच्छा बाबा जी, ये बताइए आप करने क्या गए थे कि आपको भूत मिल गया, मैंने तो कभी नहीं देखा ? दूसरा जवाब भी उतने ही आत्मविश्वास से बाबा जी ने दिया बोले,” बेटा वो गर्मी के दिन थे, मैं सुबह भोर में अपने आमों के बगीचों की रखवाली करने जा रहा था उसी समय वो सफेद कुर्ता वाला आदमी आया |” 

अब क्या था उस उमर में इतनी ही दिमाग होती और मन ही मन सोचता कि “हाँ मेरे बाबा तो बड़े पहलवान हैं”, फिर क्या था ये कहानी ही अगले दिन दोस्तों के साथ क्लास में गप्प का टॉपिक और खुद की ‘शेखी-बघारने’का कारण बन जाता |

हाँ जी, लेकिन अब बड़ा हो गया हूं तो समझ-बूझ आया कि भूत-प्रेत जैसी कोई चीज होती नहीं लेकिन बाबा जी की वो कहानियाँ ऐसी ही याद आती रहेंगी क्योंकि उनमें मेरा बचपना छिपा और बाबा जी का प्रेम-वात्सल्य |

तो अगली बार फ़िर मिलते हैं घर, गाँव व बचपन की सालों पुरानी यादों से जो पीछे छूट चुकी थीं | हमारी इस पोस्ट को अपने लोगों में भी शेयर कीजिए और अगर ऐसी ही कुछ चीजें हमें बताना चाहते हैं तो कमेंट कीजिए, मेल कीजिए हम जरूर आपके नाम और फोटो सहित अपनी वेबसाइट में आपको स्थान देंगे | धन्यवाद

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