रांची: 1995 में किये गए 17 वे सैंवधानिक संशोधन में केंद्र व राज्य सरकार को यह अधिकार दिए गए है कि वह पदोन्नति में भी आरक्षण दे सकती है, लेकिन झारखंड सरकार पर आरोप है कि राज्य के विभिन्न सेवाओं एवम् पदों पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया। इस संबंध में रिपोर्ट देने और विभिन्न आरोपी की जांच के लिए सरकार द्वारा कमेटी गठित की गई थी।
जानकारी के मुताबिक कमेटी ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो को सौंपी है। कमेटी ने विधानसभा अध्यक्ष को 365 पन्नों की सौंपी रिपोर्ट में व्यवस्था को लागु न किये जाने के दाव पेंचो को बताया है। साथ ही अपनी सिफारिश में उन सभी मुख्य सचिवों और कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव के खिलाफ एससी एसटी एक्ट में मुकदमा दायर करने की अनुशंसा की है जिन्होंने पदोन्नति में आरक्षण को लागु होने से रोका था।
इस कमेटी में संयोजक जे एम एम विधायक दीपक बीरूवा को बनाया गया था जबकि विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा व सरफराज अहमद इस कमेटी के सदस्य थे। विधायक बंधु तिर्की को आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया गया। कमेटी के अनुसार संवैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए तथा समस्त दस्तावेजों का ध्यान पूर्वक अध्ययन करते हुए यह रिपोर्ट तैयार की गई है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए राज्य के सभी sc-st विधायकों के साथ बैठक की और कुल सात आठ बैठकों के बाद मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
कमेटी की अनुसंशा
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उन सभी अधिकारियों की पदोन्नति को रद्द कर दिया जाए जिन्हें sc-st अधिकारियों के बदले पदोन्नत किया गया था। साथ ही 2007 के बाद के उन सभी मुख्य सचिवों और कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव के खिलाफ एससी एसटी एक्ट में मुकदमा दायर किया जाए जो उस समय कार्यरत थे। इसी के साथ जिन sc-st अधिकारियों को पदोन्नत नहीं किया गया उन्हें पिछली तिथि से पदोन्नत माना जाए।
झारखंड विधानसभा के स्पीकर रविंद्र नाथ महतो ने अपने बयान में कहा कि परिपाटी के अनुसार विधानसभा द्वारा की गई अनुशंसा सरकार द्वारा मान ली गई है जिसके बाद कार्यवाई को निर्देशित किया जायेगा।
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