नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21A के संदर्भ में शिक्षा की गारंटी के अधिकार के तहत बच्चों को दी जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना होनी चाहिए, जो यह दर्शाता है कि शिक्षकों को मेधावी होना चाहिए और सबसे अच्छा।
ये टिप्पणी उच्चतम न्यायालय ने दायर की गई अपीलों को खारिज करते हुए की है। बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य में 69,000 सहायक अध्यापकों की भर्ती से जुड़े एक मामले में उत्तर प्रदेश शिक्षा मित्र एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और मोहन एम शांतनगौदर की पीठ ने कहा कि एटीआरई 2019 में 65-60% की कटऑफ पूरी तरह से वैध और न्यायसंगत थी। पीठ ने कहा कि स्कूलों में शिक्षा के मानकों को बनाए रखने के लिए, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद को विशेष रूप से स्कूलों या कॉलेजों में शिक्षकों के रूप में भर्ती होने के लिए व्यक्तियों की योग्यता निर्धारित करने का अधिकार है।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि नियम 14 के साथ पढ़े गए नियम 2 (1) (x) में प्रावधान है कि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता अंक सहायक शिक्षक के रूप में चयन के लिए योग्य माना जाना चाहिए। अपील में उठाया गया तर्क यह था कि 65-60% पर निर्धारण परीक्षा के बाद किया गया था।
आधार मंजूश्री बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (2008) 3 एससीसी 512 और अन्य मामलों में फैसले पर रखा गया था। अदालत ने इस विवाद को खारिज करते हुए कहा कि के मंजुश्री में निर्धारित सिद्धांत और वर्तमान मामले में स्थिति के बीच एक बुनियादी अंतर है।
अदालत ने अपील खारिज करते हुए कहा कि, यदि अंतिम उद्देश्य सबसे अच्छी उपलब्ध प्रतिभा का चयन करना है और न्यूनतम योग्यता अंक तय करने की शक्ति है, तो 65-60% पर कट ऑफ के निर्धारण में कोई अवैधता या अनौचित्य नहीं है।