अगरतला: पिछले कुछ समय में देखा गया है कि कभी सोशल मीडिया पर तो कभी बॉलीवुड फिल्मों में हिंदू धर्म और हिंदू देवी-देवताओं पर भद्दी टिप्पणी कर धर्म का अपमान किया जाता है और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाती है।
इसी बीच त्रिपुरा हाई कोर्ट ने एक केस में अपना फैसला सुनाते हुए व्यक्ति के खिलाफ दायर एफआईआर रद्द कर दी जिसके खिलाफ अपनी फेसबुक पोस्ट में हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद गीता का अपमान करने का मुकदमा चल रहा था। इसी फेसबुक पोस्ट में शिकायतकर्ता के अनुसार गीता को “ठकवाजी गीता” बताकर धार्मिक पुस्तक का अपमान किया गया था।
जिस पर त्रिपुरा हाई कोर्ट के जस्टिस अकील कुरैशी की बेंच ने एफआईआर को रद्द कर आरोपित को बड़ी राहत दे दी। आरोपित ने अपने बयान में कहा कि उसका अर्थ था कि “गीता एक कढ़ाई है जिसमें ठगों को भूना जाता है”।
जिस पर कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यदि कोई व्यक्ति धार्मिक भावनाओं का गैर इरादतन अपमान करता है तो उसे IPC की धारा 295 ए तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
अदालत ने माना कि आरोपित ने जानबूझकर धर्म का अपमान करने के उद्देश्य से यह पोस्ट नहीं की।
अदालत ने अपनी टिप्पणी पूरी करते हुए कहा कि धारा 295 ए के तहत धार्मिक भावनाओं के अपमान कि प्रत्येक कोशिश को अपराध मानकर दंडित नहीं किया जा सकता है। बल्कि केवल उन कोशिश को दण्डित किया जाता है जहां किसी वर्ग विशष के धर्म का अपमान करने के उद्देश्य से इरादतन तरीके से अपमान किया गया हो।
वहीं अतिरिक्त लोक अभियोजक ने कहा कि आरोपित का स्पष्ट इरादा धार्मिक पुस्तक पर भद्दी टिप्पणी कर धार्मिक भावनाएं आहत करने का था जैसा कि उसने अपनी पिछली पोस्ट में भी किया है जबकि आरोपी ने FIR को रद्द करने की गुहार लगाते हुए पिछले साल कोर्ट में कहा कि “उसका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं का अपमान करना नहीं था। बल्कि उसकी पोस्ट को अन्य संदर्भ में पेश किया गया क्योंकि उसकी अभी वह बंगाली में थी तो उसका गलत मतलब निकाल कर पेश किया गया”।
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अकील कुरैशी ने शिकायतकर्ता की सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि मामले को इस ढंग से नहीं देखा जाएगा कि आरोपित ने अपनी पिछली पोस्ट में क्या लिखा है। आरोपित का उद्देश्य इस पोस्ट में भावनाएं आहत करने का कोई प्रयास नहीं था। और आरोपित के खिलाफ दायर एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया।