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पढ़िए: UP की गड्ढेदार सड़के आखिर क्यों दें रही है वाहन की गद्देदार सीट को चालक की कमर बचाने की चुनौती

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनते ही सबसे प्रमुख घोषणाओं में से एक घोषणा सड़कों को गढ्ढा मुक्त करना भी था। लेकिन समय के साथ स्थानीय अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण यह घोषणा सफेद हाथी बन कर रह गई है। सरकार द्वारा दिए गए तमाम आश्वासनों और वादों के बावजूद अभी भी तक बहुत सी ऐसी सड़कें हैं जिन पर चलकर आपके लिए अनुमान लगाना मुश्किल हो जाएगा कि सड़क में गढ्ढे हैं अथवा गढ्ढों में सड़क है। इस प्रकार की सड़कों पर चलना किसी एडवेंचर से कम नहीं होता।

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में सड़कों पर हर दो फीट पर गढ्ढे आपको ऊंची नीची पहाड़ियों पर बाइक राइडिंग का अनुभव कराते प्रतीत होते हैं। हम इस लेख में जिस सड़क की चर्चा कर रहे हैं उस सड़क पर चलने का अनुभव हमारे स्थानीय प्रतिनिधि ने स्वयं किया और अपना अनुभव हमसे साझा किया। इससे संबंधित एक रिपोर्ट भी आप दिए गए यूट्यूब लिंक के माध्यम से देख सकते हैं।

ऐसी ही एक स्थिति मुख्यमंत्री के गृहजनपद गोरखपुर के पड़ोसी जनपद संतकबीर नगर की भी है। यहां सड़कों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। अभी तक योगी सरकार की सड़कों को 7 मीटर करने की योजना यहां परवान नहीं चढ़ सकी है।

आज हम सामान्य सडकों को छोड़कर उस सड़क की चर्चा करेंगे जिसका शिलान्यास स्वयं मुख्यमंत्री योगी के हाथों हो चुका है। यह सड़क मगहर से हरनही वाया सोनबरसा की हालत है। इस मार्ग की लम्बाई लगभग 26 किलोमीटर की है, जिसमें से लगभग 4 किलोमीटर जनपद संतकबीर नगर में पड़ता है और शेष गोरखपुर में। यह एक अन्तर्जनपदीय मार्ग है। इस सड़क के माध्यम से सैकड़ों गांवों के लोग सीधे एनएच 28 से मगहर में आकर जुड़ते हैं। इसके बारे में मुख्यमंत्री जी को अच्छे से पता है क्योंकि वह इस क्षेत्र के सांसद हुआ करते थे और लंबे समय तक इस क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं।

इस मार्ग का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसकी स्थिति इस प्रकार है कि गोरखपुर जनपद में रहने वाले लोगों को सामान्य दिनचर्या से संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गोरखपुर जाने के बजाय संतकबीर नगर के जिला मुख्यालय खलीलाबाद जाने में अधिक सहुलियत होती है। इस क्षेत्र से जहां गोरखपुर महानगर की दूरी 30 से 35 किमी है वहीं खलीलाबाद की दूरी मात्र 10 से 15 किमी है। इसलिए यह मार्ग हजारों लोगों की जीवन रेखा जैसा है।

योगी जी के शासन काल के प्रथम वर्ष में ही इस 26 किमी मार्ग को 7 मीटर करने की योजना पर मुहर लगा दी गई थी और मुख्यमंत्री ने इसका शिलान्यास भी कर दिया था। लेकिन दुर्भाग्य से यह कार्य अभी तक अपनी चौथाई नहीं कर सका है। हास्यास्पद स्थिति यह हो गई है कि जिस 6 किमी मार्ग का चौड़ीकरण किया गया है वह संतकबीर नगर सीमा अर्थात खुदवा नाले से कटसहरा तक करके छोड़ दिया गया है। अगर आप हरनही से निकलते हैं तो आपको पहले सिंगल टूटे-फूटे रोड से होते हुए 16 किमी की दूरी तय करते हुए कटसहरा तक आना पड़ता है और उसके बाद आपका 7 मीटर के शानदार सड़क के दर्शन होंगे और आपकी स्पीड अचानक बढ़ जाएगी। आप मदमस्त होकर अपनी रौ में चलते जाएंगे और यह 6 किमी कब गुजर जाएगी आपको पता ही नहीं चलेगा। फिर अचानक खुदवा नाले का दर्शन होगा और पुलिया पार करते ही आपकी मस्ती हवा हो जाएगी। दो पहिया अथवा चार पहिया दोनों प्रकार के वाहनों द्वारा मगहर तक आपको इतना झकझोर दिया जाएगा कि आपका दिमाग ठिकाने आ जाएगा।

आपके समझ में नहीं आएगा कि जब 20 किमी दुर्दशा झेलकर चलना है तो बीच में 6 किमी मार्ग को लंदन की तरह बनाने की क्या उपयोगिता हो सकती है और आप सिर पकड़ कर योजनाकार अधिकारियों व सरकार को गालियाँ बकते हुए अपनी पीठ सीधी करने का प्रयास करते हुए अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर जाएंगे।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मगहर रेलवे फाटक से गैस गोदाम तक नवंबर महीने में ही गढ्ढे भरने का काम हुआ है लेकिन अगर आपको कहीं कहीं बिछी प्लास्टिक नहीं दिखी तो आपको अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा कि यह पैचिंग का काम हुआ है।

गोरखपुर में पड़ने वाले पुराने मार्ग की स्थिति तो फिलहाल कुछ गनीमत है लेकिन संतकबीर नगर के हिस्से में घुसते ही आपको लगेगा कि आप तोरा बोरा की सड़को में चल रहे हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को इससे कोई सरोकार ही नहीं है। क्योंकि मोदी है ना, लोगों को गरज होगी तो वोट करेंगे।

खुदवा नाले के बाद संतकबीर नगर के इसी 4 किमी के हिस्से में लगभग 3 सौ मीटर सड़क की स्थिति ऐसी है कि अगर इंद्र देव थोड़े से मेहरबान हो जाते हैं तो यहां गंगा जमुना बहने लगती हैं। इस बरसात में लोगों के द्वारा कष्ट झेलने के बाद उसमें ईंट डाल दी गई है। जो लोगों को चिढ़ाती हुई प्रतीत होती हैं ।

ऊपर भ्रष्टाचार भले ही कम हो गया हो लेकिन नीचे भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। इस सड़क पर संतकबीर नगर के हिस्से में पड़ने वाले तीन गांवों की दुर्दशा के बारे में सोचने देखने वाला कोई नहीं है। यही हालात अभी है यही हालत दशकों से थी।

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