नई दिल्ली: भारतीय संसद देश विदेश की भव्य इमारतों में से एक है। संसद के चल रहे सत्र में बजट राष्ट्रपति भाषण और फिर गुलाम नबी आजाद की विदाई पर बहस हुई लेकिन कल 12 फरवरी को जब संसद भवन निर्माण के 100 साल पूरे हुए तो यह ऐतिहासिक लम्हा बहुत शांति और तन्हाई सन्नाटे से गुजर गया।
12 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने संसद भवन की आधारशिला यह कहते हुए रखी की यह इमारत भारत के पुनर्जन्म का प्रतीक बनेगी। जब संसद भवन की उम्र एक शताब्दी हुई तो यह लम्हा और भी खास हो जाता है क्योंकि भारत में अपने लिए अब एक नए संसद भवन के निर्माण की आधारशिला रख ली है और महज कुछ वर्षों बाद यह इमारत केवल इतिहास का अवशेष बनकर रह जाएगी।
अंग्रेजी हुकूमत की राजधानी दिल्ली में रायसिना हिल के आसपास बनावट का खाका खींचा। खाका खींचने वाले सर एडविन लुटियंस ने प्रख्यात डिजाइनर सर हरबर्ट बेकर के साथ मिलकर संसद भवन का खाका खींचा और निर्माण की आधारशिला रखी ड्यूक ऑफ़ कनॉट ने जिनके नाम पर कनॉट पैलेस मार्केट का नाम रखा गया।
संसद भवन में लगे पत्थर ही भारत की संपूर्ण संस्कृति और इतिहास की निशानी है। जब आधारशिला रखने के समय भव्य समारोह आयोजित हुआ तो इस अवसर के लिए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने ब्रिटिश शासन द्वारा मान्यता प्राप्त सभी रियासतों के प्रमुख को आमंत्रित किया तो ड्यूक ऑफ कनॉट नेअपने भाषण में कहा कि सभी महान शासक सभी बड़े लोग और सभी प्रमुख सभ्यताएं अपनी पहचान पत्थरों, संगमरमर और धातुओं पर छोड़ कर जाते हैं जो कि बाद में इतिहास बन जाता है।
ड्यूक ऑफ कनॉट प्रिंस ने कहा कि भारतीय राजधानी का स्थान विश्व के महत्वपूर्ण शहरों में होगा जो कि अपनी संस्कृति और इतिहास को संजोए हुए हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय राजधानी में सम्राट अशोक व मुगल शासन की समानताएं भी शामिल की जानी चाहिए।
संसद भवन जैसी विशाल इमारत के निर्माण के लिए भारी मात्रा में पत्थर चूना एवं अन्य निर्माण सामग्री की आवश्यकता पड़ी, इसके लिए नजदीक में ही रेल लाइन बिछाई गई।
लगभग 6 साल के निर्माण के बाद 1927 में काउंसिल हाउस नाम की है इमारत तैयार हुई जिसका नाम बदलकर 15 अगस्त 1927 को संसद भवन रख दिया गया।
स्वतंत्र भारत की लगभग सभी अच्छे बुरे क्षणों की यह इमारत साक्षी रही है जिनमें वह काला दिन भी शामिल है जब 17 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर आतंकवादी हमला हुआ।