किसान आंदोलन: दिल्ली दंगे में बंद उमर खालिद व शरजील जैसों की रिहाई की मांग, कहा पहले दिन से ही थी मांग

नई दिल्ली: किसान कानूनों के विरोध में दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के बीच भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्राहां) ने इस मंच का इस्तेमाल UAPA के तहत गिरफ्तार कई आरोपियों की रिहाई की मांग के लिए किया।

रिपोर्ट के मुताबिक 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस पर गुरुवार को नक्सलियों के साथ संबंध में कड़े यूएपीए के तहत आरोपी बनाए गए किए गए वरवारा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा के अलावा दिल्ली दंगे उकसाने में बंद उमर खालिद शरजील इमाम सहित 20 से अधिक आरोपियों की तस्वीरें टिकरी सीमा के पास एक मंच पर लगाई। कई मानवाधिकार समूहों ने भी भाग लिया।

पहले से थी तैयारी:

बीकेयू (एकता-उगराहां) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष झंडा सिंह जेठुके ने कहा था “हम बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए आवाज उठाने के लिए टिकरी सीमा के पास बाबा बंदा सिंह नगर में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाएंगे। पूरे आंदोलन में इन कैदियों की रिहाई की मांग लगातार उठाई जाती रही है। मोदी सरकार फासिस्ट एजेंडा चला रही है। एक तरफ यह अडानी और अंबानी को बढ़ावा दे रहा है और दूसरी तरफ यह बुद्धिजीवियों और गतिविधियों को जेल में डाल रहा है। भीमा कोरेगांव व दिल्ली दंगे भड़काने के लिए यूएपीए के तहत लगभग दो दर्जन कार्यकर्ताओं को बुक किया गया है।”

बीकेयू (उग्राहां) के वकील और समन्वयक एन के जीत ने कहा “जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए पहले दिन से ही यह हमारी मांगों का हिस्सा रहा है। सरकार ने कहा है कि शहरी नक्सलियों, कांग्रेस और खालिस्तानियों द्वारा किसान आंदोलन को उकसाया गया है। शहरी नक्सल लोगों पर मुकदमा चलाने का एक बहाना है। पंजाब में, लोगों को राज्य आतंकवाद और आतंकवादियों के बीच फंसाया जाता है। नक्सलवाद ने आदिवासी लोगों को उनके अधिकारों का दावा करने में मदद की है।”

उन्होंने आगे कहा, “हम उनकी विचारधारा का समर्थन नहीं करते हैं। लेकिन आदिवासी लोग अपने जल, जमीन और जंगल को बचाने के लिए भारत में संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। सरकार ने उन्हें नक्सलियों के रूप में चिह्नित किया है।”

Protest at Tikri Border

उन्होंने कहा “इन आरोपियों का समर्थन करना हमारा सचेत निर्णय है। खालिस्तानी इस किसान आंदोलन का हिस्सा नहीं थे। पूरे भारत में नक्सल आंदोलन हमेशा किसानों का आंदोलन था। इन आरोपियों को रिहा करना बीकेयू की मांग है। हमने कृषि बिल से संबंधित सरकार को ज्ञापन का हिस्सा बनाया।”

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