RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयानों से छेड़छाड़ पर इंडिया टुडे के खिलाफ शिकायत की गई दर्ज

नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख के बयानों से छेड़छाड़ को लेकर इंडिया टुडे के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है।

देश का जाना माना मीडिया हाउस इंडिया टुडे एक और मुश्किल में फंस गया है। दरअसल अब आरएसएस चीफ डॉ मोहन भागवत के बयान को तोड़ मरोड़ कर सांप्रदायिक घृणा, हिंसा और अशांति फैलाने के आरोप में इंडिया टुडे और इसके एडिटर इन चीफ अरुण पुरी के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की गई है। इसके अलावा शिकायत में मानहानि का भी जिक्र किया गया है।

भिवानी हरियाणा के रहने वाले RSS स्वयंसेवक की ओर से सिद्धार्थ आचार्य जोकि सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट हैं उन्होंने संसद मार्ग, नईदिल्ली स्थित थाने में IPC की धाराओं 153A, 295A, 499, 501, 502 के तहत इंडिया टुडे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है।

करोड़ो लोगों की भावनाओं से खिलवाड़:

शिकायतकर्ता विवेक कुमार ने मामले को लेकर कहा कि “आरएसएस हमेशा शांति और सामाजिक सद्भाव के लिए खड़ा रहा है। RSS स्वयंसेवक होने के नाते, मैं इस तरह की तोड़ मरोड़ को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इंडिया टुडे ने न केवल सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश की है, बल्कि आरएसएस के स्वयंसेवकों की करोड़ों की भावनाओं को भी आहत किया है।”

आगे उन्होंने कहा “इंडिया टुडे ने स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया है और प्रकाशन और समाचार रिपोर्टिंग के अधिकार की सीमा को पार कर लिया है।”

इंडिया टुडे ने बयानों से किया था छेड़छाड़:

गौरतलब है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक इंटरव्यू को संदर्भित करते हुए 10 अक्टूबर को एक आर्टिकल को ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा था कि “मोहन भागवत ने कहा है कि ‘हमारे संविधान ने यह नहीं कहा कि केवल हिंदू यहां रह सकते हैं; उसके बाद केवल हिंदुओं को ही यहां सुना जाएगा; यदि आप (मुस्लिम) यहां रहना चाहते हैं, तो आपको हिंदुओं की श्रेष्ठता को स्वीकार करना होगा।”

क्या था असली बयान:

संघ प्रमुख ने महाराष्ट्र से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिका विवेक को दिये साक्षात्कार में कहा था, ”सबसे ज्यादा भारत के ही मुस्लिम संतुष्ट हैं।” उन्होंने कहा था कि क्या दुनिया में एक भी उदाहरण ऐसा है जहां किसी देश की जनता पर शासन करने वाला कोई विदेशी धर्म अब भी अस्तित्व में हो। भागवत ने कहा, ”कहीं नहीं। केवल भारत में ऐसा है।” उन्होंने कहा कि भारत के विपरीत पाकिस्तान ने कभी दूसरे धर्मों के अनुयायियों को अधिकार नहीं दिये और इसे मुसलमानों के अलग देश की तरह बना दिया गया।

भागवत ने कहा था, ”हमारे संविधान में यह नहीं कहा गया कि यहां केवल हिंदू रह सकते हैं या यह कहा गया हो कि यहां केवल हिंदुओं की बात सुनी जाएगी, या अगर आपको यहां रहना है तो आपको हिंदुओं की प्रधानता स्वीकार करनी होगी। हमने उनके लिए जगह बनाई। यह हमारे राष्ट्र का स्वभाव है और यह अंतर्निहित स्वभाव ही हिंदू कहलाता है।”

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