बैंक कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज SC-ST एक्ट को कर्नाटक हाईकोर्ट ने किया रद्द, बताया कानून का दुरूपयोग

बेंगलुरू: कर्नाटक हाईकोर्ट ने केनरा बैंक के 10 कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज एससी एसटी एक्ट को रद्द करते हुए इसे कानून का दुरूपयोग बताया है।

दरअसल बैंक की टाउन हॉल शाखा में प्रबंधक के रूप में कार्यरत शिकायतकर्ता को कुछ अनियमितताओं के कारण निलंबित कर दिया गया था और बाद में पेंशन प्राप्त करने के बाद भी शिकायतकर्ता ने अधिनियम की धारा 3(1)(पी) और 3(1)(क्यू) के तहत बैंक के दस अधिकारियों के खिलाफ एससी-एसटी के तहत झूठा मामला दर्ज करा दिया था।

वहीं इस मामले में हाईकोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाति के बैंक कर्मचारी पर अनियमितताएं बरतने के आरोप में शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही में कर्मचारी द्वारा एससी एसटी एक्ट की धाराओं को चुनौती नहीं दी सकती हैं।

कोर्ट ने कहा कि एससी एसटी एक्ट की इस धारा के तहत यदि किसी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य के खिलाफ मारपीट या अपमानजनक व्यवहार होता है, तो वह एससी एसटी एक्ट के तहत अपराध होगा।

क्या था मामला?

दरअसल चंद्रकांत मुनवल्ली के द्वारा हाईकोर्ट में दायर शिकायत के अनुसार वह टाउन हॉल बैंक शाखा में प्रबंधक के रूप में कार्यरत था, जहां उसके खिलाफ अनियमितताओं लिप्त पाए जाने पर विभागीय जांच के बाद 2013 में निलंबित कर दिया था।

जिसके बाद शिकायतकर्ता ने राज्य के एससी एसटी आयोग में जाकर शिकायत दर्ज कराई थी कि बैंक द्वारा विभागीय जांच कराकर और जुर्माना लगाकर उसके खिलाफ अत्याचार किया है, जिसके बाद आयोग की सिफारिश पर हाईकोर्ट ने बैंक को निर्देश दिए कि आयोग द्वारा की गई सिफारिशों पर ध्यान देकर मामले का निपटारा किया जाए।

जिस पर ध्यान देते हुए अनुशासनिक प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता को मिडिल मैनेजमेंट ग्रेड स्केल II से जूनियर मैनेजमेंट ग्रेड- I में स्थानांतरित कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने स्वयं बैंक प्राधिकारी से संपर्क कर समय अवधि में कमी के साथ मिडिल मैनेजमेंट ग्रेड स्केल II में रहने की अपील की थी और तय समयावधि के बाद सेवानिवृत्त हो गया था।

कानून की शक्ति का दुरुपयोग

दर्ज प्राथमिकी को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने प्राथमिकी को कानून की शक्ति का दुरुपयोग बताया है, उन्होंने कहा कि यह पूर्ण रूप से कानून का दुरूपयोग है और सिद्धपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की आवश्यकता है।

उपरोक्त तथ्यों के अनुसार, यदि आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह निस्संदेह उत्पीड़न में बदल जाएगी और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।

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Kapil reports for Neo Politico Hindi.

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