नई दिल्ली- आरक्षण के मुद्दे पर बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया हैं। कोर्ट ने कहा कि जिन पिछड़ी जातियों को आरक्षण का पूर्ण रूप से लाभ मिल चुका है, उन्हें आरक्षण छोड़ देना चाहिए। ताकि अन्य अति पिछड़ी जातियों को इसका लाभ मिल सकें। वहीं जब भी आरक्षण का विरोध होता है तो हर बार यहीं सुनने को मिलता है कि आरक्षण केवल 10 साल के लिए लागू किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को यह सवाल किया कि पिछड़ी जातियों की संपन्न उपजातियों को आरक्षण के दायरे से बाहर क्यों नहीं किया जा रहा, जिसके बाद वह सामान्य वर्ग से कंपीटिशन करेगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ फिलहाल यह देख रहीं हैं कि राज्य अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सब-कैटेगरी कर सकते हैं।
इसी बीच पीठ में शामिल जज विक्रम नाथ ने यह मुद्दा उठाया और कहा कि ताकतवर व तरक्की कर चुकी जातियों को आरक्षण की सूची से हटाने की जंग अक्सर चलती रहती हैं। इतना ही नहीं पीठ में शामिल जज बीआर गवई जो खुद एससी वर्ग से आते है, उन्होंने भी कहा कि इस समुदाय का एक व्यक्ति आईएएस और आईपीएस जैसी सेवाओं में जाने के बाद सबसे बढ़िया सुविधाओं तक पहुंच जाता हैं। क्या इसके बाद भी उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता रहना चाहिए।
बता दे कि सुप्रीम कोर्ट में यह सारी बातें पंजाब सरकार के आरक्षण से जुड़े मुद्दे की सुनवाई के दौरान हुई। जहां एक ओर पंजाब सरकार राज्य में अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 के वैध होने का बचाव कर रहीं हैं, तो वहीं सुप्रीम कोर्ट आर्थिक तौर पर मजबूत हो चुकी जातियों को इससे बाहर लाने की बात कर रहीं हैं। इसी बीच एक और सवाल सामने आता है कि कोटा सिस्टम कुछ समय के लिए दिया गया था, फिर आजादी के सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह क्यों चला आ रहा हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.