‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ कहने वाले नेताजी की जयंती आजादी के 7 दशकों बाद ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनी

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती है। देश के स्वाधीनता आंदोलन के नायकों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा….!
जय हिन्द। जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी की जीवनी और कठोर त्याग आज के युवाओं के लिए बेहद ही प्रेरणादायक हैं.

नेता जी की जीवन:

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे.

नेता जी का सफर:

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से सहायता लेने का प्रयास किया था, तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें खत्म करने का आदेश दिया था.

नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इंफाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया. 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया.

सन् 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ.

6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं। और अंत में 18 अगस्त, 1945 को जापान शासित फॉर्मोसा अब वर्तमान में (ताइवान) में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि नेताजी की मृत्यु अब भी विवादों में है। नेताजी की कुछ फाइलें की खोज अब भी चल रही है ताकि उनकी मृत्यु का असली कारण पता लगाया जा सके लेकिन आज भी संशय बरकरार हैं.

आजाद हिंद फौज बनाकर देश की आजादी के लिए बिगुल फूंकने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है. और इस अवसर पर सरकार ने फैसला लिया है कि अब हर साल 23 जनवरी यानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाएगा.

+ posts

Kapil reports for Neo Politico Hindi.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

रामायण के प्रशंसक बने ब्राजील के राष्ट्रपति, पहले HCQ दवा अब वैक्सीन को हनुमानजी द्वारा लाई संजीवनी बूटी बताया

Next Story

7 बहनों समेत 12 सदस्यों के पालक ATM गार्ड राजू शर्मा की जम्मू में हत्या कर दी गई, परिजन बेहाल

Latest from इतिहास में आज

छावनी क्षेत्रों में कई सड़कें व इमारतें अंग्रेजों के वफादार अधिकारियों के नाम पर हैं, इनके नाम बदलने पर विचार करें: रक्षामंत्री

नई दिल्ली: रक्षा मंत्री ने छावनी क्षेत्रों में सड़कें और इमारतें जिनका नाम ब्रिटिश शासन के…

भोपाल में हबीबगंज स्टेशन के बाद मिंटो हॉल का नाम भी बदला, पूर्व भाजपा अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर होगा हॉल

भोपाल: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पहले हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदला और अब ऐतिहासिक…

भोपाल: मिंटो हॉल का नाम बदलकर संविधान सभा के पूर्व उपसभापति हरिसिंह गौर के नाम पर करने की मांग, मंत्री बोले- अच्छा सुझाव है

भोपाल: मध्यप्रदेश में भी अब नाम बदलने की मुहिम ने जोर पकड़ लिया है। हबीबगंज रेलवे…

MP: जनजातीय नायक राजा शंकर शाह के नाम पर होगा ‘छिंदवाड़ा विश्विद्यालय’ का नाम, CM शिवराज की घोषणा

छिंदवाड़ा: मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह की भाजपा सरकार ने छिंदवाड़ा विश्विद्यालय का नाम जनजातीय नायक राजा…

PM मोदी को मिले उपहारों व स्मृति चिन्हों की उनके जन्मदिवस से होगी नीलामी, गंगा संरक्षण के लिए सौंपी जाएगी आय

नई दिल्ली: संस्कृति मंत्रालय 17 सितंबर से प्रधानमंत्री को मिले उपहारों और स्मृति-चिन्हों की ई-नीलामी आयोजित…